For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो तो बड़ा अकेला था,

उसको सबने लूटा था,
खुशियों की छाव में भी,
उसने गम ही समेटा था,
वो तो बड़ा अकेला था....
हँसी और किलकारी थी
चहु ओर फुलवारी थी,
सभी ओर तो सावन था,
उसने तो मरू ही देखा था,
वो तो बड़ा अकेला था...
हाथों में तो रोटी थी,
जो उसके जैसी रोती थी,
गम की ठंडी हवा में भी,
सुख को उसने जीर्ण चादर लपेटा था,
वो तो बड़ा अकेला था...
कहने को है शब्द बहुत,
एहसासों का मेला था,
लोग बहुत थे साथ मगर,
उसने दुःख का आलिंगन देखा था,
वो तो बड़ा अकेला था...
छला गया था अपनों से,
ह्रदय भरा था प्रेम रंग से,
अपनों में भी उसने,
अपनों को न पहचाना था,
वो तो बड़ा अकेला था,
वो तो बड़ा अनूठा था,
वो तो बड़ा अकेला था,
सबने उसको लूटा था...

Views: 376

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2011 at 10:44pm

आपकी रचना पढ़ी हमने. इस प्रयास पर हार्दिक बधाई.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 26, 2011 at 10:00pm
लोग बहुत थे साथ मगर,
उसने दुःख का आलिंगन देखा था,
वो तो बड़ा अकेला था...
आह, बहुत ही दर्द है इस रचना में, योग्यता जी आपने मन के भावों को शब्दों की मोती से बहुत ही सुन्दरता से पिरोया है, अच्छी रचना, बधाई स्वीकार करें |
Comment by आशीष यादव on December 23, 2011 at 5:47pm

sundar bhaw ki rachna hetu badhai.

Comment by Yogyata Mishra on December 23, 2011 at 11:09am

thnx

Comment by Abhinav Arun on December 23, 2011 at 8:53am

अच्छी रचना योग्यता जी हार्दिक बधाई आपको !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
22 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service