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ग़ज़ल :- धमा चौकड़ी करता बचपन

ग़ज़ल :-  धमा चौकड़ी करता बचपन
 
धमा चौकड़ी करता बचपन ,
कहाँ किसी से डरता बचपन |

खुली छूट की चारागाहें ,
बड़े मौज से चरता बचपन |

पल में कुट्टी पल में मेरी ,
गांठें मन की हरता बचपन |

 गिल्ली डंडा पेंच पतंगें ,
खूब उड़ानें भरता बचपन |

चार टिकोरे लगे जहां पे ,
डाल उचक के धरता बचपन |

बूढ़ पुरनिये दुलराते हैं ,
आशीषों से फरता बचपन |

हम ठहरीले ताल तलैय्ये ,
निश्छल झरना झरता बचपन |

हम ही अक्सर मर जाते हैं ,
नहीं हमारा मरता बचपन |

             - अभिनव अरुण
 
{ओ बी ओ लाइव महा-उत्सव अंक -१२ में प्रस्तुत }

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Comment by Abhinav Arun on October 16, 2011 at 12:36pm
सही कहा सौरभ जी आपने !!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 15, 2011 at 8:46pm

यह उचित भी है अरुण अभिनवजी.

ओबीओ के किसी आयोजन में सम्मिलित रचना को आयोजन के समापन के बाद रचनाकार को उसे अपने हिस्से में डाल लेनी चाहिये. इससे, एक तो, रचना की अपनी इकाई नियत हो जाती है.  दूसरे, यह रचना उन पाठकों के लिये भी उपलब्ध हो जाती है जो उसे आयोजन काल में नहीं देख पाये थे. 

Comment by Abhinav Arun on October 15, 2011 at 7:54pm
apka bahut abhar adarniy saurabh ji .apki tippani wahan mili thi sanklan me ye nahi dikhi so yahan rakh liya taki aage sathi chahe to padh saken.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 15, 2011 at 3:19pm

अरुण अभिनवजी, बहुत-बहुत बधाइयाँ स्वीकारें. एक-एक शे’र पुर-असर और भावनाओं से भरपूर.  पल में कुट्टी, पल में मेरी .. वाह ! क्या बचपन-छुए शब्दों का प्रयोग हुआ हैं !  काफ़िया में प्रयुक्त सभी हर्फ़ बेमिसाल हैं. विशेषकर आपने हरता, धरता, फरता शब्दों का इस्तमाल कर भावों को एकदम से सटीक कर दिया है.

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