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मैं अपनों से उम्मीद ही कम रखती हूँ

मैं हिफाज़त से तेरा दर्दो अलम रखती हूँ
और खुशी मान के दिल में  तेरा ग़म रखती हूँ।

मुस्कुरा देती हूँ जब सामने आता है कोई
इस तरह तेरी जफ़ाओं का भरम रखती हूँ।

हारना मैं ने नहीं सीखा कभी मुश्किल से
मुश्किलों आओ दिखादूं मैं जो दम रखती हूँ। 

मुस्कुराते हुए जाती हूँ हर इक  महफ़िल में
आँख को सिर्फ़ मैं तन्हाई में नम रखती हूँ 

है तेरा प्यार इबादत मेरी  पूजा मेरी 
नाम ले केर तेरा मंदिर में क़दम रखती हूँ। 

दोस्तों से न गिला है न शिकायत है "सिया"
क्यों के मैं अपनों से उम्मीद ही कम रखती हूँ!

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Comment

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Comment by Anwesha Anjushree on September 13, 2011 at 9:16pm

ummid kam rakhti hu...behad khubsoorat..marmsparshi

Comment by Brij bhushan choubey on September 13, 2011 at 12:54pm

                  दोस्तों से न गिला है न शिकायत है "सिया"
क्यों के मैं अपनों से उम्मीद ही कम रखती हूँ!.........      क्या बात है .

Comment by mohinichordia on September 13, 2011 at 11:43am

हारना मेने  नहीं सीखा मुसीबतों से ......बहुत सुन्दर सिया सचदेव जी |वैसे पूरी गज़ल  ही अच्छी है |

Comment by दुष्यंत सेवक on September 13, 2011 at 11:10am

मुस्कुराते हुए जाती हूँ हर इक  महफ़िल में
आँख को सिर्फ़ मैं तन्हाई में नम रखती हूँ 

है तेरा प्यार इबादत मेरी  पूजा मेरी 

नाम ले केर तेरा मंदिर में क़दम रखती हूँ। 

bahut hi sundar shabd hain....pyar ki unchaiyon ko darshati is behad shandar gazal ke liye badhai sweekaren

Comment by siyasachdev on September 13, 2011 at 10:47am

JANAB GANESH BAQI JI AAPKI DAD AUR ANDAZE BAYAN BUJHTE HUE CHARAGH KO BHI RAUSHAN KAR SAKTA HAI-BAHUT BAHUT SHUKRIYA


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2011 at 9:55am

//मैं हिफाज़त से तेरा दर्दो अलम रखती हूँ
और खुशी मान के दिल में  तेरा ग़म रखती हूँ।//

वाह वाह खुबसूरत मतला, गम को भी ख़ुशी समझ दिल मे जगह देना ...बहुत बड़ी बात कह गई सिया जी |

//मुस्कुरा देती हूँ जब सामने आता है कोई
इस तरह तेरी जफ़ाओं का भरम रखती हूँ।//

क्या बात है, जोरदार शे'र, खुद को भरम में रखने की बात, बेहतरीन ख्याल |

//हारना मैं ने नहीं सीखा कभी मुश्किल से
मुश्किलों आओ दिखादूं मैं जो दम रखती हूँ।//

बिलकुल सोलह आना सही, व्यक्ति की परीक्षा मुश्किलों में ही होती है, मिसरा उला में मुश्किल की जगह मुश्किलों मुझे ज्यादा उपयुक्त लग रहा,

//मुस्कुराते हुए जाती हूँ हर इक  महफ़िल में
आँख को सिर्फ़ मैं तन्हाई में नम रखती हूँ //

यह शे'र भी जबरदस्त निकाला है आपने, बहुत ही इफेक्टिव है,

//है तेरा प्यार इबादत मेरी  पूजा मेरी 
नाम ले केर तेरा मंदिर में क़दम रखती हूँ।//

आय हाय ! क्या बात कही है, इस ग़ज़ल से सबसे खुबसूरत शेर, बहुत बढ़िया |

//दोस्तों से न गिला है न शिकायत है "सिया"
क्यों के मैं अपनों से उम्मीद ही कम रखती हूँ!//

सही करती है, उम्मीद करने से ही सारे कष्ट है, खुबसूरत मकता, सब मिलाकर आपने एक बेहतरीन ग़ज़ल पेश किया है, दाद कुबूल करे |

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