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लघुकथा : बहू-बेटी

लघुकथा : बहू-बेटी

“अम्मा ! तुम भी घर का कोई काम किया करो, नहीं तो इस तरह तुम्हारे हाथ-पैर जुड़ जाएंगें।” घुटनों के दर्द से करहाती अपनी माँ की दुर्दशा देखकर ससुराल से आई बेटी ने कहा।
“ हाँ बेटी ! तू ठीक ही कहती है, किया करूंगी कुछ काम....”
“ हाँ दीदी, मैने भी कई बार अम्मा जी से कहा है कि आप भी कुछ काम किया करें .......” पास बैठी बहू ने कहा
” काम किया करूँ, तो तुझे ब्याह कर लाने का मुझे क्या फायदा........... काम किया करो....” सास ने बहू की बात को बीच में ही काटते हुए तीखे स्वरों में कहा।

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 3:53pm

.सार्थक लघु कथा  ! लेखनी की इस धार को सलाम है .............  बधाई मित्र !

Comment by राज लाली बटाला on August 29, 2011 at 8:10pm

Aapne Sach likha hai !! Khoob hai !!


Comment by monika on August 25, 2011 at 3:44pm

आदरणीय रवि प्रभाकर जी आपने बहुत ही गहरी बात कही हे इस लघु कथा के माध्यम से ये भेद जो इस नाज़ुक रिश्ते मे बना हुआ हे वो शायद कभी ख़त्म नही हो सकता हाँ आज समय के साथ सास बहू के रिश्ते की परिभाषा ज़रूर बदली हे सोच भी बदली हे मगर आज भी कुछ परिवार हे जहाँ बहू और बेटी का फ़र्क उनके बीच की दूरिया कभी दूर नही हो पाती इस भावुक और उम्दा लघु कथा के लिए आपको बहुत बहुत बधाई.

Comment by आशीष यादव on August 22, 2011 at 11:45am

kam shabdon me kitni khubsurati se aapne in kunthao ko prakat kar diya.

shayad isi ko laghukatha kahte hai.

Comment by Ravi Prabhakar on August 22, 2011 at 10:21am

बागी भाई एवं श्रद्धेय पाण्डेय जी,
आपकी हौसला अफजाई के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2011 at 9:24am

रवि प्रभाकरजी, इस तरह के मनस को संतुलित होने में कितने वर्ष अभी और लगेंगे इसकी चर्चा तो बाद में. पहले तो ये कि इन व्यक्तिगत किन्तु सार्वभौमिक कुंठाओं की क्या दवा है?

आपकी प्रस्तुत कथा ऐसी विसंगतियों की धार को कुछ कुंद कर सके इस अपेक्षा के साथ हार्दिक शुभकामनाएँ.

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 22, 2011 at 9:21am

आदरणीय रवि प्रभाकर जी, आपकी कलम कम शब्दों में वह लिख जाती है जिसको कहने के लिए एक किताब की जरुरत है, प्रस्तुत लघु कथा धीरे से प्रारंभ होकर एकाएक चोट करती है, इस लघु कथा का भाव उसी प्रकार है जैसे कोई शक्तिशाली पटाका का पलीता धीरे धीरे सुलगते हुए अचानक धम्म की आवाज के साथ समाप्त किन्तु सन्न की आवाज देर तक कानो में गूंजता रहता है |

 

भाव प्रधान लघु कथा हेतु बहुत बहुत आभार |

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