For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222-1222-1222-1222

जो आई शब, जरा सी देर को ही क्या गया सूरज।
अंधेरे भी मुनादी कर रहें घबरा गया सूरज।

चमकते चांद को इस तीरगी में देख लगता है,
विरासत को बचाने का हुनर समझा गया सूरज।

उफ़क तक दौड़ने के बाद में तब चैन से सोया,
जमीं से भी जो जाते वक्त में मिलता गया सूरज।

तुम्हें रोना है जितनी देर, रो लो शाम का रोना,
मगर दीपक की बाती पर सिमट कर आ गया सूरज।

वो आईना दिखाने में बहुत मसरूफ़ थे लेकिन,
बिना बोले इधर बे-इंतिहा हंसता गया सूरज।

बहुत महंगी पड़ी मौका परस्ती बादलों को भी,
उन्हीं को चीर के जब रौशनी फैला गया सूरज।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 90

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 31, 2025 at 8:54pm

आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित करती है. आपने प्रत्येक शेर पर मुग्ध करती प्रतिक्रिया दी है. , वाक्यांश ’मुनादी कर रहे’ कको ठीक करता हूँ. इस सराहना और प्रेरित करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद .. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 31, 2025 at 8:50pm

आदरणीय सतविन्द्र कुमार राणाजी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 24, 2025 at 1:03pm

सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह ! 

प्रत्येक शेर में गझिन भावों को करीने से बुना गया है. ऐसा कि मतला ही एक पाठक को अपने बहाव में ले लेता है. 

जो आई शब, जरा सी देर को ही क्या गया सूरज।
अंधेरे भी मुनादी कर रहें घबरा गया सूरज ... ..    क्या ही कमाल का मतला है. कमतर विचारवाले दल के छुटभइयों द्वारा मचाये जा रहे कुहराम या बवाल और चलाये जा रहे विमर्श को सशक्त शब्द मिले हैं. अलबत्ता, वाक्यांश ’मुनादी कर रहे’ होगा. .. 

चमकते चांद को इस तीरगी में देख लगता है,
विरासत को बचाने का हुनर समझा गया सूरज ... .. वाह ! किसी गुरुतर व्यक्तित्व के स्वामी के अशक्त होने पर परिवार की विकट परिस्थितियों में अन्य सदस्य द्वारा अपने कर्त्तव्य निर्वहन के लिए संलग्न रहना खूबसूरती से बाँधा गया है. भाव-विभोर करता शेर हुआ है.   

उफ़क तक दौड़ने के बाद में तब चैन से सोया,
जमीं से भी जो जाते वक्त में मिलता गया सूरज।  ...  त्वदीयं वस्तु गोविन्द, तुभ्यमेव समर्पये का सुंदर पहलू, कि सब ठीक से रहना...

तुम्हें रोना है जितनी देर, रो लो शाम का रोना,
मगर दीपक की बाती पर सिमट कर आ गया सूरज। .. क्या ही महीन भाव हैं ! दायित्व निर्वहन चिंता मात्र करने, रोने-चिल्लाने से नहीं, बल्कि अपने आपको झोंक देने से होता है. . 

वो आईना दिखाने में बहुत मसरूफ़ थे लेकिन,
बिना बोले इधर बे-इंतिहा हंसता गया सूरज। ........ वाह. अधजल गगरी छलकती ही है, भरी गगरिया चुप्पे जाये. 

बहुत महंगी पड़ी मौका परस्ती बादलों को भी,
उन्हीं को चीर के जब रौशनी फैला गया सूरज .....  कुशल, सक्षम लोगों का कौशल बहुत दिनों तक नकारा नहीं जा सकता. वह उभर कर प्रकाश में आता ही आता है. 

व्यंजना भाव का सुंदर निर्वहन करती इस बेहतरीन प्रस्तुति ने मुग्ध कर दिया, आदरणीय मिथिलेश जी. हार्दिक बधाइयाँ 

शुभातिशुभ

 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 20, 2025 at 8:29am

जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 7, 2025 at 9:43pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 28, 2025 at 4:45am

आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service