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यूँ तो जीवन हर समय, मृगतृष्णा के पास
सच हो जाते स्वप्न पर, करके सत्य प्रयास।१।
*
देख दिवस में सप्न जो, करता खूब प्रयत्न

वह उनको  साकार  कर, पा  लेता है रत्न।२।
*
जिसने जीवन में किया, सपने को कर्तव्य
टूटा करता  वह  नहीं, बन  जाता है भव्य।३।
*
स्वप्न बने उद्देश्य  जब, करना  पड़ता कर्म
जीवन में सबसे प्रथम, समझ इसे ही धर्म।४।
*
निज जीवन के स्वप्न जो, पर हित में दे त्याग
मान उसे  सबसे  अधिक, सपनों से अनुराग।५।
*
सपने  कैसे   पूर्ण  हों, जो  ये  करे विचार
कर लेता है कर्म को, निज दैनिक व्यौहार।६।
*
तन-मन अर्पित जो करे, धारण करके धीर

सार्थक उसके सप्न कर, व्यर्थ न जाता तीर।७।
*
सपने मिलते धूल में, भाग्य न दे जब साथ
कारण  इसका  बैठना, धरे  हाथ पर हाथ।८।
*
जो जीवन कर्मठ  रहा, कष्ट  शूल को मार
बाधा बनता कब समय, सपनो के आधार।९।
*
सपने रहें अपूर्ण तो, मत किस्मत को कोस
करने को साकार वो, निज बल बुद्धि परोस।१०।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2025 at 11:07am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by Sushil Sarna on February 10, 2025 at 12:11pm
उत्तम प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई

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