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पथ पर चलते रहो निरंतर(गीत-१५)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

पग की गति हो चाहे मन्थर।
पथ पर  चलते  रहो निरंतर।।
*
सूनापन  हो   या  निर्जन  हो।
तमस भले ही बहुत सघन हो।।
विचलित थोड़ा भी ना मन हो।
मत पाँवों में  कुछ अनबन हो।।
*
शूल चुभें या कंकड़ पत्थर।।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
जो भी इच्छित क्यों सपना हो।
चाहे जितना भी खपना हो।।
हर नूतन पथ बस अपना हो।
धैर्य न डोले जब तपना हो।।
*
मत करना जीवन में अन्तर।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
अंतिम परिणति जैसी भी हो।
जीवन  से  विश्वास  नहीं खो।।
विचलित मन से कहना मत रो।
पथ  पर  बैठी  हर  बाधा  को।।
*
चरण-ध्वनि  से  देना  उत्तर।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
जागो - जागो, हर पल जागो।
हड़बड़ में बस कभी न भागो।।
दिल्ली  में  या  रहो  शिकागो।
तन मन से हर आलस त्यागो।।
*
यह जीवन है साल न सत्तर।
पथ पर  चलते  रहो निरंतर।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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