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अजब मौसम हुआ है आज वो  सूरज नहीं है
है बर्फीली फज़ा जारी साज़ तो सूरज नहीं है !
मरें मुफ़लिस अभी ठंडी उन्हें घर क्या क़मी है
लगे हैं लाव लश्कर दर अमीरों  क्या ग़मी है

अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नहीं है !

दरीचों पर जमी है बर्फ ठिठुरन हड्डियों है
है बिस्तर गर्म नेताओं के गरमी गड्डियों है
बुलाकर अफसरों को घर अभी फाइल पढ़ी है
है मौसम ये पकोड़ो का अभी दारू उड़ी है
गरीबों को लगे अब ठंड चढ़ती फुरफुरी है

अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नही है !

कहीं जलती अलावों ठंड की अरथी नहीं है
अभी शायद हवा वो बेधती हड्डी नहीं है
नहीं पर्यावरण अब शुद्ध अच्छा वो बहाना
तुम्हीं ने गैस छोड़ी आसमाँ जीवन नहीं है 

अजब मौसम हुआ आज वो सूरज नही है !

बढ़ी वो भीड़ भी सैलानियों की दिख रही है
अमीरों को नहीं चिन्ता गरीबों की रही है
निकलता गर है वो सूरज अँधेरा झोंपड़ी है
नशीली धूप तो अट्टालिका में ही बसी है !

अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नहीं है !

प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'

मौलिक व अप्रकाशित

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