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झरता रहा सावन, तपता रहा मन
आषाढ़ सूखा, कहीं बाढ़, कहीं रूखा
कृषक का धैर्य छूटा

सावन की घड़ियाँ, कुछ बूँदे, कुछ लड़ियाँ
गिर भी गईं तो क्या?

मौसम की मार, जीना दुश्वार
कैसी हरियाली, कचरे की क्यारी

पर आशा ही तो थाती है, ढर्रे पर लौटेगा जीवन
सोच व्यापी है

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Usha Awasthi on August 19, 2022 at 6:06pm

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, रचना अच्छी लगी , जानकर खुशी हुर्ई।

हार्दिक आभार आपका , सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2022 at 4:56pm

आ. ऊषा जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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