For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज़ादी में आधी आबादी का योगदान....जंग अभी भी जारी हैं....

आज़ादी में आधी आबादी का योगदान....जंग अभी भी जारी हैं.....
महात्मा गांधी जी ने कहा, आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी के बिना स्वराज्य प्राप्ति असंभव हैं। शारीरिक-मानसिक रूप से कमजोर समझने वाले लोगों के खिलाफ जाकर महिलाओं को राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा से जोड़ा।और महिलाओं ने लोगों के कहने की परवाह किए बिना अपने आपको तौले मानसिक दृढ़ता के दस्तावेज,संघर्ष के संवेदनशील चित्रण पर डर को खारिज करते हुये समय के फलक पर अपनी कहानी लिख दी।पूर्वाग्रही सोच में जकड़े नकारात्मक मानसिकता पर पर्दा डालकर मजबूत इरादों के साथ चुनौतियों का सामना करते हुये खिंची लकीर को बढ़ा दिया और परिस्थितियों और रूढ़ियों में खुद को साबित करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
आजादी की पिचहत्तर वीं सालगिरह बना रहा देश...इस आजादी के संघर्ष में समाज के विकास और तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका का  निर्वहन कर रही आधी आबादी की पूरक महिलाएं...घूंघट से निकलकर स्वतंत्रता आन्दोलनों में अभूतपूर्व योगदान दिया।फिर भी हम आजादी के करीब सात दशक व्यतीत होने के पश्चात भी सोच से आजाद नही हो पाये हैं। बाहरी तौर पर आधुनिक सोच का लबादा ओढ़े चेहरे के पीछे खोखली संकीर्ण मानसिकता झलकती हैं। बदलाव हुआ हैं आधी आबादी घर से निकल संसद तक पहुंची...फिर भी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं।ये लड़ाई आज की नहीं बल्कि आजादी से पहले से चली आ रही हैं। स्वतंत्रता की लड़ाई से लेकर संविधान निर्माण में उनके अभूतपूर्व योगदान को भुलाया नहीं जा सकता,जिनमें कई गुमनाम हैं तो कई इतिहास में दर्ज हैं जो आज की महिलाओं की प्रेरणास्रोत हैं।
इस आजादी के संघर्ष में पुरुषवर्चस्व समाज और आधी आबादी की पूरक महिलाओं ने परिस्थितियों व रूढ़ियों में खुद को साबित करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराई हैं।  समाज के विकास और तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन कर रही हैं जिन्हें पूर्वाग्रही सोच के चलते सामाजिक-पारिवारिक ढांचे में महिलाओं को हाशिये पर रखकर कमतर आँका जाता हैं।

गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित राधाबाई ने अपना सर्वस्व जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित करने की ठानी। रग-रग में बसा देशभक्ति का जज्बा अंग्रेजों की यातनाओ से भी नही डिगा। विश्व की प्रथम महिला विधानसभा उपाध्यक्ष  और भारत की पहली महिला विधायक पद्म भूषण सम्मानित मुत्तुलक्ष्मी दक्षिण भारत से अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिनिधित्व किया। सामाजिक पुनर्जागरण स्वतन्त्रता संग्राम,महिला शिक्षा एवं लोकतन्त्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करवाने नारी जागरण की पक्षधर रेड्डी ने देवदासी प्रथा,मताधिकार दिलाने हेतु अनुकरणीय प्रयास किए। क्रांतिकारियों के विचारों से प्रभावित राजकुमारी ने काकोरी कांड में सेनानियों के लिए हथियार पहुंचाने की ज़िम्मेदारी उठाई। गांधीवादी आदर्शों से प्रभावित राजकुमारी चन्द्रशेखर आजाद की हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन का हिस्सा बनकर आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया।

स्वदेशी आंदोलन की प्रेणता,भारती की संपादक प्रख्यात स्वतन्त्रता सेनानी ,लेखिका सरला देवी ने अपनी लेखनी के कहर को जन-जन के दिलोदिमाग में उद्धेलित की। बचपन से ही अँग्रेजी शासन की विद्रोहक सरला देवी ने स्वतन्त्रता आंदोलन को लोकमान्य की तर्ज पर धार्मिक पर्वों से जोड़कर जनसामान्य में प्रतिष्ठित कर दिया कि लोग खुद-व-खुद गुलामी की बेड़ियों से मातृभूमि को आजाद करने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दे। गांधीजी के सान्निध्य में तपोनिष्ठ बनी रामेश्वरी भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ी और अपने रचनात्मक नारी शिक्षा,नारी कल्याण,हिन्दी प्रचार में लगाकर आंदोलन में भाग लेकर जेल जाकर स्वतन्त्रता सेनानी में नाम दर्ज कराना मकसद नही था बल्कि देश सेवा कार्य में अंतिम समय तक प्राणप्रण से निभाते रहना था। माता रामेश्वरी व महिला उद्धारक के नाम से विख्यात रामेश्वरी को जब पुलिस हरिजन वेश में घर पकड़ने आई तब उन्होने कहा, ‘अब शायद पुलिस वाले भी जान गए हैं कि मेरे घर के दरवाजे हरिजनों के लिए चौबीस घंटों के लिए खुले हुये हैं।

नेहरू जी करीबी महिला मित्र उनके कई कामों में सलाह देने वाली  पश्चिमी बंगाल की पहली राज्यपाल पदमाजा नायडू भारत छोडो आंदोलन में सक्रिय भाहीदारी लेकर जेल गई और खाड़ी को बढ़ावा देकर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया।कई भाषाओं की जानकार अपनी क्लाश छोड़कर जुलूस में शामिल होने वाली तेरह वर्षीया निरमाला देशपांडे ने सृजनात्मक लेखन कार्यों से हिट उत्थान और राष्ट्र उत्थान जगाया। देशभक्ति का जज्बा,जुनून रगो में बसा था,आंदोलन में भाग ना लेने के लिए शिक्षको द्वारा चॉकलेट का प्रलोभन दिया जाता था तो प्रतिउत्तर होता था, 'चॉकलेट नहीं,स्वराज्य चाहिए।'वर्मा की भरदामिनी गांधी जी के नक्शे कदम पर चलकर देश की आजादी से लेकर आजीवन उनके कहे शब्दों को अपने जीवन में ढाला, 'अब तुम खुद बापू बन गई हो।' पद्मश्री व नेहरू पुरुसकार से सम्मानित कुलसुम सयानी ने स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान जेलों में बंद कैदियों की हिन्दुस्तानी में सुधार उनके रहबर अखबार को पढ़कर-सुनकर करते थे।
स्त्री शिक्षा और नारी अधिकारों की लड़ाई शुरू करने वाली जोशीली दुर्गावती ने नमक सत्याग्रह के दिनों में जगह-जगह तूफानी दौरों में ओजस्वी भाषणों द्वारा आम लोगों में स्वतन्त्रता का अलख जलाया। महिला हितों के साथ कभी भी सम्झौता ना करने वाली दुर्गावती दो-तीन बार जेल भी गई और अपनी अड़भूत संगठन क्षमता जनप्रियता से ब्रिटिश खेमे में खलबली मचा दी।आज जो केंद्रीय कल्याण योजनाएँ क्रियान्वित हैं उनका श्रेय दूरगावाती को जाता हैं जिंका कहना था कि एक लड़के की शिक्षा एक व्यक्ति की शिक्षा और एक लड़की शिक्षा पूरे परिवार की शिक्षा। महिलाओं के दिलों में आजादी की ज्योति जलाने वाली और राष्ट्र प्रेम की राह दिखाने वाली बसंत लता ने प्रभात फेरी,जोशीले नारों से आजादी का बिगुल बजाकर अंग्रेजों को नाको चने चबाबा दिये। विदेशी सामान,शरा,गाँजा के उत्पादन का वीरोध किया और अपनी साथिन मोहिनी,गौहेन,स्वर्णलता के साथ मिलकर एक बिंग बाहिनी की स्थापना की।

आजाद हिन्द फौज की फली कमांडर लक्ष्मी सहगल ने अपनी पहली लड़ाई का शुभारंभ अपनी दादी के खिलाफ जातिवाद के मुद्दे पर आवाज बुलंद करके किया। पेशेवर से डॉक्टर लक्ष्मी की जिंदगी नेताजी से भेंट करने पर बदल गई।दिसंबर,1944 में वर्मा के लिए कूच किया और मई,1945 में उन्हें ब्रिटिश सेना ने गिरफ्तार कर लिया तथा मार्च,1946 तक वर्मा के जंगल में नजरबंद रही। लेखन को प्यार और पत्रकारिता को विवेक माने वाली नयनतारा देश की स्वतन्त्रता के साथ ही वैचारिक स्वतन्त्रता की पक्षधर थी। गांधीवाद से प्रभावित नयनतारा ने इंग्लैंड जाका पढ़ाई ना करने का तर्क दिया कि हम जिस देश से आजादी के लिए जंग कर रहे थे,वहाँ जाकर शिक्षा ग्रहण करना कैसे संभव हैं। क्रान्ति की पताका कमला देवी वूमेंस मूवमेंट ऑफ इंडिया जैसी अनेक किताबो की लेखिका ही नही बल्कि स्वतन्त्रता संग्राम की जुझारू नेत्री,सामाजिक क्रान्ति की अग्रदूत और एक महान कलाकार भी थी।स्वभाव व रहन-सहन में विद्रोह रंगीन मिजाजी कमला देवी ने 1930, नमक सत्याग्रह के दिन बंबई स्टॉक एक्सचेंज के बाहर खड़े लोगों मे बेधड़क होकर गैर कानूनी नामक की पुड़िया बेचकर आजादी की लड़ाई के लिए चन्दा एकत्र किया। कलाओं को पुनर्जीवन देने वाली क्रांतिकारी रंगीन महिला के नाम से विख्यात कमला देवी पद्मविभूषण,रमन मैगसेसे पुरुसकार से सम्मानित थी और बचपन से ही गंभीर,खामोश रहने वाली कमला ने अपनी पढ़ाई विदेश की सुविधा छोड़ स्वदेश लौटी और असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन आजादी की लड़ाई में कूद गई।
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की बेजोड़ वीरांगना और भारतीय साहित्य में कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध सरोजनी नायडू असहयोग आंदोलन से जुड़ी और बंगाल विभाजन के समय स्वतन्त्रता संग्राम में हिस्सा लिया। आत्मविश्वास से भरी दृढ़ मनोबली सरोजनी ने घर-घर घूमकर स्वतन्त्रता का अलख जलाया। विनोदी स्वभाव से घनी उनकी आँखों में बचपन से ही साहस की चमक दिखती थी। जालियांवाला बाग हत्याकांड से व्यथित होकर क़ैसर ए हिन्द खिताब वापस करने वाली सरोजनी को जब दांडी यात्रा के दौरान पुलिस कर्मी ने हाथ पकड़ा तो वो सिंहनी-सी गरजकर दहाड़ी, 'हाथ मत लगाओ, मैं स्वयं आती हूँ।' स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन की स्थापना करने वाली उमा देवी ने स्त्रियॉं को चाहादीवारी से बाहर निकालकर आजादी के स्वतन्त्रता आंदोलन से जोड़ा। उन्होने बड़े-बड़े ओहदे को ठुकराकर अपनी सोच की आजादी को चुना। आम महिला से हटकर संविधान प्रारूप तय करने बिना किसी छुट्टी के रोजाना असेंबली जाने वाली अममू स्वामी नाथन ने आजादी की लड़ाई में अपनी निजी जिंदगी न्यौछावर कर दी। भारतीयों को स्त्रियों के प्रति रूढ़िवादी सोच को चुनौती देने वाली इक्कीस साल की बीना ने सरे आम बंगाल गवर्नर स्टेनले जैक्सन पर गोली चलाकर अग्रेजों के दिलों में दहशत बैठा दी। अँग्रेजी शासन को अपने कारनामो से हिलाने वाली बीना के साहस की चर्चा गली-गली हवा की तरह फ़ैल गई।
सन 1930 में रायपुर में हुआ आंदोलन खाड़ी प्रचार एवम महिलाओं के योगदान पर आल्हाकार ने लिखा- ‘बहू-बेटियाँ हमारी कहिए,रणचंडी की ही अवतार,खादी आज देश में विपत पड़ी हैं,तुम सब हो तैयार।’पद्मभूषण से सम्मानित आदिवासी रानी गैदिनलियू नागा समुदाय की 13 साल में आंदोलन से जुड़ी और सोलह साल में उन्हे अंग्रेजों ने आजीवन कारावास दिया। आदिवासियों का नारा था, ‘करो या मरो,अंग्रेजों भारत छोड़ो।’ 

सविनय अवज्ञा आंदोलन हो या दांडी यात्रा,असहयोग आंदोलन या आंदोलनों के लिए जुटाई जाने वाली सहयोग राशि सभी में महिलाओं ने अपनी अग्रणी भूमिका निर्वहन की।महिलाओं में बढ़ती जागृति से वो स्थानीय स्तर पर हड़ताल,धारणा,प्रदर्शनी,विदेशी कपड़ों का बहिष्कार,शराब की दुकानों पर धारणा, नाटकीय शैली में बहिष्कार को सफल बनाया। घर में रहने वाली महिलाओं में से रोहिणी, गोस्वामी, रुक्मणी बाई,खूब चंद बघेल की माँ केतकी बाई ,अंजुमन,मंटोरा बाई, मौरकी बाई जैसी अनेक महिलाओं ने स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान अभूतपूर्व उत्कृष्ट हिस्सा लेकर आंदोलन की सेनानी बनी। हर कदम पर आधी आबादी का साथ दिया।
हालांकि अन्य देशों की तरह हमारे देश कि महिलाओं को मताधिकार,आत्मनिर्भरता के लिए संवैधानिक अधिकार मिले। फिर भी उन्हे अपने अस्तित्व के लिए आज दिन तक संघर्ष करना पड़ रहा हैं।जितनी आसानी से उन्हे अधिकार संविधान से प्राप्त हुये पर उतनी तत्परता से सामाजिक-पारिवारिक परिवेश में नही। आधी आबादी की पूरक होने पर भी उन्हे अपनी निर्णायक भूमिका की बागडोर संभालने की कमान थामने में संकीर्ण सोच हावी हो रही हैं। उनके प्रतिनिधित्व को नजर अंदाज कर नक्कारखाने की तूती समझकर अपने इशारे पर कठपुतली की तरह  करवाया जाता हैं।

यद्यपि हम अंग्रेजों की दासता से तो मुक्त हो गए पर महिलाओं को दोयम दर्जे का मानने वाला पुरुषप्रधान समाज की अहंकारी मानसिक संकीर्णता से आजाद नही हो पा रहे हैं। अभी भी ऊपर से आधुनिकता का दिखावा करती मानसिकता परंपरागत रूढ़ियों की बेड़ियों में जकड़ी हुई आजाद होने से छटपटा रही हैं। तथापि आजादी के बाद बढ़ते शैक्षणिक स्तर के ग्राफ से विभिन्न क्षेत्रों मे तरक्की की ओर नई इबारत लिखी हैं,नई बेड़ियाँ तैयार हो गई हैं।श्वेत-श्याम चलचित्रों की तरह आजादी की तस्वीर में आज के चलचित्रों कि तरह रंग भरे जा रहे हैं पर अभी भी कुछ रंग धुंधले हैं।

केरल के करीब 800 साल पुराने सबरीमाला स्थित भगवान अय्यप्पा के मंदिर में 10-50 साल कि महिलाओं के प्रतिबंध को हटाते हुये जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि शारीरिक वजहों से मंदिर में आने से रोकना रिवाज का जरूरी हिस्सा नही। ये पुरुषप्रधान सोच को दर्शाता हैं। हॉस्टल से दिन ढलने के पश्चात आजादी की मांग करने वाली सर्वप्रथम भोपाल की लड़कियों ने विरोध किया तत्पश्चात दिल्ली की महिला ने पिंजरा तोड़ अभियान चलाया जिसका मकसद था,गैर वाजिब बन्दिशों को हटाकर महिलाओं को बराबरी का हक मिले। उनका कहना था कि हक की लड़ाई तो हम जीत गए पर लैंगिक समानता की राह अभी मुश्किल हैं।

सशस्त्र सेना में बराबरी का मोर्चा हासिल करने करीब दो दशक की लंबी कानूनी जंग जीती। महिलाओं को कमांड की पोस्ट ना दिये जाने का कारण, ‘पुरुष आदेश नही मानेंगे’ पर अदालत ने सरकार की दलील को रूढ़िवादी बताकर, फटकार लगाते हुये कहा कि मानसिकता बदलने की जरूरत हैं। संविधान अनुच्छेद 14 के खिलाफ लैंगिक रूढ़ियाँ महिलाओं के खिलाफ का ही नही ,सेना का भी अपमान हैं।मुस्लिम महिलाओं के हिट में तीन तलाक ,हिन्दू उत्तराधिकार संशोधन ऐक्ट के तहत बेटी को पैतृक संपत्ति मे बराबर का हिस्सा, तीस फीसदी वर्क फोर्श में महिलाओं की भागीदारी हुई।
यह कटु सत्य हैं कि समाज सहजता से कुछ नही देता।यह हमारे देश की बिडंबना है कि संवैधानिक तौर पर अधिकारसंपन्न होकर भी महिलायें समाज की मानसिक संकीर्णता के तले उनके अधिकार रौंदे जाते हैं। हालांकि हर क्षेत्र में सफलता के झंडे गाढ़ती जनगणना की मृतप्राय आधी आबादी अपनी क्षमता,जागरूकता,दृढ़संकल्प संजीवनी से जीवांत होकर बदलती परिस्थितियों के साथ पूर्वाग्रही सोच को बदलकर एक नई इबारत लिखने में कामयाब हो रही हैं ,घिसी-पिटी परंपरागत परिभाषा की नई भाषा गढ़ रही हैं।  फिर भी अभी सच्ची आजादी की जंग जारी हैं..
पुरूषवर्चस्व क्षेत्रों में शंखनाद करती महिलाएं चुनौतियों से पार पाने का माद्दा उठाती,किसी मौके का इंतजर नही करती बल्कि खुद मौके तलाश कर अपने अस्तित्व के लिए जंग छेड़ रही हैं। जब तक विचार को आचार में नही ढालेगे तब बदलाव नामुमकिन है...संकुचित सोच के खिलाफ जंग जारी हैं...!

स्वरचित व अप्रकाशित हैं। 

बबीता गुप्ता 

Views: 320

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on August 16, 2021 at 3:15pm

मुहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब, सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
18 hours ago
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service