For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-मेरी  उदासी  मुझे अकेला  न छोड़  देना

121   22   121   22   121   22

अगर कभी जो क़रार आये झिझोड़ देना
मेरी  उदासी  मुझे अकेला  न छोड़  देना

बिना तुम्हारे  ये ज़िन्दगी अब  कटेगी कैसे
जो तू नहीं तो नफ़स की डोरी भी तोड़ देना

जरा  सी कोई  रहे  हरारत  न जान  बाकी
कि  जाते जाते  बदन  हमारा निचोड़ देना

कभी हमारे ग़मों पे तुझको दुलार आये
वहीं उसी पल कतार भावों की मोड़ देना

तेरे ग़मो का उसे न होगा पता, है मुमकिन
मगर सिरा 'ब्रज' उदासियों का न जोड़ देना

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 905

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 16, 2021 at 9:09am

ग़ज़ल पे आपकी शिरक़त के लिए बहुत बहुत शुक्रिया भी तमाम जी...

Comment by Aazi Tamaam on April 13, 2021 at 8:41am

बेहद खोइबसूरत ग़ज़ल है आदरणीय बृज जी

सादर प्रणाम

आदरणीय अमीर सर ने जो 'भी' वाले शैर में सुझाया उसकी लय बेहद निखर के आ रही है

कभी हमारे ग़मों पे जो तुझ को प्यार आये

वहीं उसी पल कतार भावों की मोड़ देना......... बेहतरीन शैर है

सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 13, 2021 at 6:36am

ये आपकी इस्लाह और आपस मे हुई चर्चा का नतीजा है आदरणीय अमीरुद्दीन जी...सादर आभार

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 13, 2021 at 12:51am

बृजेश जी, अब दोनों शे'र दुरुस्त हो गये हैं। बधाई हो। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 12, 2021 at 11:39pm

इसके अलावा चौथे शे'र में "भी प्यार" की जगह नया शब्द "दुलार" रखता हूँ जिसका अर्थ प्यार स्नेह ही होता है।इससे मात्रा पतन की जरूरत भी नही पड़ेगी।सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 12, 2021 at 11:35pm

आदरणीय अमीरुद्दीन जी विस्तार से बताने के लिए आपका अत्यंत आभारी हूँ।उला को 

अगर कभी जो करार आये झिंझोड़ देना...करता हूँ।क्योंकि सानी में मेरी और मुझे रखना ज्यादा जम रहा।

देखिये "अगर कभी जो करार आये झिंझोड़ देना

            मेरी उदासी मुझे अकेला न छोड़ देना.....बताइयेगा सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 12, 2021 at 7:40pm

//लेकिन जो मतला अभी है उसमें कोई कमी है??दरअसल मौजूदा स्थिति में मुझे रवानगी ज्यादा समझ मे आ रही।//

जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी, हर शे'र में शाइर का अपना नज़रिया होता है, मतले के ऊला मिसरे में अगर आप का नज़रिया ये है कि मुझे बेक़रारी में रह रह कर बार बार क़रार आ सकता है तो आपका "कभी-कभी जो क़रार आये झिझोड़ देना" कहना सही है। लेकिन अगर नज़रिया ये है कि ग़म और बेक़रारी की शिद्दत इतनी है कि शायद ही कुछ पलों के लिए क़रार आ सकता है तो "मुझे कभी जो क़रार आये झिंझोड़ देना" कहना सही होगा। सादर। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 12, 2021 at 6:30pm

आदरणीय अमीरुद्दीन जी ग़ज़ल पे आपकी उपस्थित एवं इस्लाह के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया...आपका दोनों सुझाव बेहद खूबसूरत हैं।लेकिन जो मतला अभी है उसमें कोई कमी है??दरअसल मौजूदा स्थिति में मुझे रवानगी ज्यादा समझ मे आ रही।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 11, 2021 at 1:10pm

जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है बधाई स्वीकार करें।

'कभी-कभी जो क़रार आये झिझोड़ देना

 मेरी उदासी मुझे अकेला न छोड़ देना'      इस शे'र को यूँ कहें -

'मुझे कभी जो क़रार आये झिंझोड़ देना

मेरी उदासी युँ ही अकेला न छोड़ देना'   

'कभी हमारे ग़मों पे तुझको भी प्यार आये'   इस मिसरे मेंं 'भी' की जगह जो करने से रब्त आयेगा।    सादर। 

वहीं उसी पल कतार भावों की मोड़ देना'

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 9, 2021 at 9:51pm

सादर आभार आदरणीय धामी जी...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service