For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरी भावनाएं ...

एक दिन ,

भावनाओ  की  पोटली  बांध 

निकल  पड़ी  घर  से ,

सोचा,

समुद्र  की  गहराईयों  में  दफ़न  कर  दूंगी  इन्हें ..

कमबख्तों  की  वजह  से  ..

हमेशा  कमजोर  पड़  जाती हूँ  ..

फेक  भी  आई  उन्हें ..

दूर  , बहुत  दूर

पर  ये  लहरें  भी  'न' .--

कहाँ  मेरा  कहा मानती  हैं ..

हर  लहर ....

उसे  उठा  कर  किनारे  पर  पटक  जाती , 

और  वो  दुष्ट  पोटली ..

दौड़ती  भागती  मेरे  ही  कदमो  में  आ  रूकती …  

उठा   ले  आई  उसे,  ये  'सोच  कर '

कल  फिर  आउंगी , और  फेंक  दूंगी  उन्हें 

दूर  'बहुत  दूर' .....

Views: 750

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज लाली बटाला on July 27, 2011 at 8:42pm

उठा   ले  आई  उसे,  ये  'सोच  कर '

कल  फिर  आउंगी , और  फेंक  दूंगी  उन्हें 

दूर  'बहुत  दूर' ..... !! khoob!!

Comment by SURINDER RATTI on July 11, 2011 at 2:37pm
Anita Ji, Kya baat hai, bhaavnaon ki baat na puchhiye, Na khatm hone wala silsila hai, lahron ki tarah roz nayi bhaavneyein uthegi aur phir gum ho jayengi .. sunder  kavita ke liye Badhayi  
Comment by HIRALAL KASHYAP on July 10, 2011 at 9:33pm

JEEVAN ME JO SOCHA NAHI HOTA HAI

SAPNE ME JO NAHI SOCHA WAHI HOTA HAI

Comment by Tapan Dubey on July 9, 2011 at 1:04pm
Bahut khub
Comment by shrikantpandey on July 7, 2011 at 2:19pm
bhawnaye kabhi sath nahi chhodti, bhawnawo ka sath hona hi to bhata hai ,bhawna nahi to jivan kaisa? bahut bahut dhanyabad.
Comment by Anand kumar Ojha on July 7, 2011 at 9:22am

Bahut khub ..

 

Comment by Anita Maurya on July 6, 2011 at 5:16pm
बहुत बहुत शुक्रिया.. बहुत दिनों बाद OBO पर कुछ लिखा है .. आप लोगों ने पढ़ा और सराहा.. इसके लिए सादर धन्यवाद्..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2011 at 1:38am
शैली को बलौस रखा..
//कमबख्तों की वजह से
हमेशा कमजोर पड़ जाती हूँ//
बजुत खूब..
Comment by आशीष यादव on July 5, 2011 at 7:14pm
भावनाओं पर एक बहुत ही सुन्दर कविता है| ये भी बात सच है की इंसान जब तक इंसान है भावनाएं अवश्य ही आएँगी उसके अन्दर|
सुन्दर कविता, सुन्दर शब्दों से रचित,
बहुत-बहुत धन्यवाद

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 5, 2011 at 6:54pm
अनीता जी, सच कहूँ तो बहुत दिनों बाद इस tarah की खुबसूरत कविता सामने आई है , बहुत ही भावपूर्ण कविता है, बधाई आपको इस खुबसूरत और भावनात्मक प्रस्तुति हेतु |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
17 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
18 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक…"
23 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब।  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार…"
30 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service