For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रानी अवंतीबाई लोधी

भारत वर्ष की भूमि महापुरुषों की ही नहीं बल्कि देवी रूप में देश के लिए बलिदान, त्याग और अपनी जान को न्यौछावर करने वाली नारियों से भी भरी पड़ी है| जिन्होने अपनी हर हद से उठ कर अपने देश की रक्षा के लिए मान मर्यादा को ध्यान में रखते हुए सब कुछ कर गुजरने के साहस की मिशाल पेश की | कुछ इतिहासकारों के अनुसार रानी अवंतीबाई लोधी भारत की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली महिला के रूप में जाना है। जिसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रामगढ़ के रेवांचल प्रदेश में हुए मुक्ति आंदोलन की मुख्य सूत्रधार और बड़े पैमाने पर चलाने वाली नारी के रूप में जाना जाता है।

 

वह रामगढ़ राज्य के शासक विक्रमाजीत सिंह की पत्नी थी और मनकेहणी के जमींदार राव जुझार सिंह की पुत्री थी | जिसमे बचपन से हे एक वीरांगना के गुण थे | कहा जाता है कि विक्रमाजीत सिंह बचपन से ही साधू और वीतरागी प्रवृत्ति के थे इसलिए वे अधिकतर पूजा-पाठ एवं धार्मिक अनुष्ठानों में लगे रहते थे और अपने राजपाठ से कोई ज्यादा मौह नहीं था ना ही राजपाठ में उनकी कोई रूचि थी। इस कारण अप्रत्यक्ष रूप से राज्य की बागडोर रानी अवंतीबाई को ही करनी पड़ी। जिसे उन्होंने बखूबी से निभाया | धीरे धीरे वह जनता की भी चहेती बन गई थी | इसी तरह उनका वक़्त बीत रहा था बदलते वक़्त के अनुसार उन्हें अमान सिंह और शेर सिंह नाम के दो पुत्रों की माता बनने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ ।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय अंग्रेजों की राज्य हड़पने की नीति के अनुसार अंग्रेजो ने कही छोटे राज्यों में मिलाने मुहम छेड़ रखी थी और उसी के तहत उन्होने उनके रानी अवंतीबाई के दोनों पुत्रों अमान सिंह और शेर सिंह को नाबालिग घोषित कर उनके पति को अस्वस्थ साबित कर उनके राज्य को हड़पने के लिए अंग्रेजो ने हडप निति के तहत (कोर्ट ऑफ वार्ड्स) कार्यवाही की और उनके राज्य पर कब्जा करने के लिए दो सरबराहकार शेख मोहम्मद तथा मोहम्मद अब्दुल्ला को रामगढ़ पर अधिपत्य स्थापित करने के लिए भेजा लेकिन लेकिन परिणाम की परवाह किए रानी अवंतीबाई ने दोनों को रामगढ़ से बाहर खदेड़ दिया और उन्होंने अपने राज्य को सुरक्षित करने के लिए नई नीतियाँ बनानी शुरू कर दी | दुर्भाग्य से इसी बीच राजा विक्रमादित्य सिंह की मृत्यु हो गयी और रानी अवंतीबाई को इस बात बहुत बड़ा धक्का लगा लेकिन उन्होंने हारी नहीं मानी और उन्होंने स्तिथि को भांपते हुए अपने नाबालिग पुत्रों की संरक्षिका और जनता की माँग पर प्रत्यक्ष रूप में राज्य चलाना स्वीकार कर लिया।  रानी ने राज्य के किसानो और निवासियों के हक़ में कुछ दृढ़ और सख्त निर्णय लेते हुए उन्हें अंग्रेजों के निर्देशों को न मानने का आदेश दिया | उनके निर्णयों और राज्य हित के आदेशों के कारण राज्य में उनकी लोकप्रियता तो बढ़ी ही बल्कि जनता ने उनके सभी सुधार कार्य पर अमल करते हुए उनके आदेश को सर आंखों पर लेना शुरू कर दिया।

रानी ने धीरे धीरे अपने राज्य के आस-पास के राजाओं, परगनादारों, जमींदारों, और शक्तिशाली पुरुषो के साथ बैठके और सम्मेलन करने शुरू कर दिए ये सम्मेलन शुरुआत में रामगढ़ में आयोजित किये जाते थे फिर धीरे धीरे रामगढ से बाहर भी शुरू हो गए | जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ते देख रानी सम्मेलनों की अध्यक्षता का कार्य गढ़पुरवा के राजा शंकरशाह दे दी अब रानी अपने राज्य के अन्य कार्यो के साथ अपनी सेना को मजबूती देने में झुट गई। कुछ सम्मेलनों को गोपनीय तरीके तो कुछ को प्रत्यक्ष रूप से किया जाना शुरू हो गया|  इन सम्मेलनों की खबर किसी भी अंग्रेज अधिकारी तक पहुंची थी इसका फायदा रानी बहुत अच्छे से उठाया और प्रचार-प्रसार करने का उन्होने एक अजीब तरह का तरीका अपनाया उन्होने एक पत्र और दो काली चूड़ियों की एक पुड़िया बनाकर प्रसाद के रूप में वितरित शुरू कर दिया| इस पत्र में लिखवाया गया था कि भविष्य में आजादी के लिए अंग्रेजों से संघर्ष के लिए तैयार रहो नहीं तो चूड़ियां पहनकर घर में बैठो | इस तरीके के अनुसार जो भी पत्र को लेता था उसका मतलब था कि लेने वाला होने वाले संघर्ष में वह रानी के साथ है | एक तरह से देखा जाये तो यह पत्र सहभागिता और एकजुटता का प्रतीक बनता जा रहा था और चूड़ियां देने से तात्पर्य था जनता के पुरुषार्थ जागृत करना |  इस तरह से देश के कुछ क्षेत्रों में आजादी के लिए संघर्ष शुरू हो चूका था | कहा जाता है कि उस समय जबलपुर पैदल सैनिक टुकड़ी केन्द्र की सबसे बड़ी शक्ति थी और इसी सेना के एक सिपाही ने अंग्रेजी सेना के एक अधिकारी पर हमला कर दिया जिसका विरोध दिन पर दिन बढता जा रहा था कि इसी बीच मण्डला के परगनादार ने कर देने से इनकार कर जनता में झूठा प्रचार करने लगा कि अंग्रेजों का राज्य समाप्त हो गया । इस तरह इस छोटे से मुद्दे ने अंग्रेज सेना को उकसाने का काम किया और उनकी नजरो में इस तरह की बातों के करने वालो को डाकू और लुटेरे की उपाधि से सम्मानित करते थे। इस तरह इन घटनाओ की छानबीन करने और उन पर कारवाही करने के लिए मण्डला के डिप्टी कमिश्नर सरकार से सेना की मांग की जिससे इस तरह के विद्रोहियों को कुचला जा सके। रानी को इस बात का पता लगने के बाद भी रानी ने अपने सम्मेलनों को नहीं रोका बल्कि और बड़े पैमाने पर अपने कार्यो को अंजाम देने लगी |

 

वर्तमान काल में राजा शंकरशाह और राजकुमार रघुनाथ शाह का वंश की वीरता, उदारता और उसकी कर्तव्यनिष्ठा के कारण लोगो में इस वंश अच्छा मान सम्मान था आस पास के राज्यों में इस वंश का अच्छा रुतबा था यहाँ तक रानी भी इस वंश के लोगो को सम्मान देती थी| ऐसे वक़्त में इस वंश पर अंग्रेज़ सरकार द्वारा देश द्रोह के आरोप ने रामगढ़ के लोगो को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बढ़कती आग में घी का काम किया | रानी ने भी अंग्रेजो द्वारा दिए गए देश द्रोह के रूप में उन्हे दिये गए मृत्युदण्ड को अंग्रेजों सरकार की नृशंसता को जोर-शोर से प्रसार-प्रचार किया गया वैसे भी उस समय ये दोनों ही मुख्य राज्यवंश माने जाते थे | इस घटना की पहली प्रतिक्रिया रामगढ़ में हुई थी और रामगढ़ के सेनापति ने भुआ उस क्षेत्र में स्थापित थाने पर हमला कर दिया जिसकी वजह से उस थाने के सभी सिपाही अपनी जान बचने के लिए उस थाने को छोड़कर भाग गए और थाने पर रामगढ के सेनापति का अधिकार हो गया | कहने को यह छोटी सी जीत थी लें रानी ने इसका भरपूर फायदा उठाया और अपने सैनिको तो तैयार कर उन्होंने घुघरी पर चढ़ाई कर उसे अपने अधिकार में ले लिया | रामगढ़ सिपाही निवासी ने मार्गो को बंद कर अंग्रेज सैनिकों की कार्यवाही को कुछ समय के लिए विराम सा लगा दिया | अब यह विद्रोह धीरे धीरे एक भयंकर रूप ले चूका था और इस विद्रोह ने अपने आस पास के सभी क्षेत्रो को भी समाहित कर लिया था | जिसे किसी एक छोटी सी सेना की टुकड़ी के साथ रोक पाना मुश्किल था और अंग्रेज अधिकारी इन विद्रोहियों को कुचलने में असमर्थ हो गए थे  और बहुत से सैनिक तो इस क्षेत्र को छोड़ कर ही जा चुके थे अब पूरा क्षेत्र पूरी तरह से स्वतंत्र हो चुका था।

 

इस जीत के कारण जनता में रानी का रुतबा बढ़ गया और जनता उनके मरने मिटने को तैयार हो गई | रानी अवंती बाई इस जीत से उत्साहित हो अपने अगली मण्डला विजय के लिए अपने सैनिक टुकड़ी के साथ आगे बढ़ी और उनका इशारा पाते ही आस पास के राजा, परगना, जमीदार भी अपने सैनिक टुकड़ियों और सामर्थ्य शाली पुरुष क्षमता अनुसार मण्डला की और रवाना हुए। इस तरह उनके मिलने से रानी की शक्ति और बढ़ गई | खैरी के पास अंग्रेज सिपाहियों साथ रानी अवंती बाई का युद्ध हुआ । अंग्रेज अधिकारी वाडिंग्टन अपनी पूरी शक्ति लगाने के बाद भी रानी को पराजित नहीं कर सका और उसे मण्डला छोड़ कर जाना पड़ा। इस प्रकार रानी की वीरता और बुद्धिमत्ता के बलबूते मण्डला एवं रामगढ़ राज्य स्वतंत्र हो गए | इस विजय में रानी की आधी सैनिक टुकड़ी वीरता को प्राप्त हो गई और रानी की सैनिक शक्ति में थोड़ी कमी आई लेकिन आजादी चाहने की इच्छा में कमी नहीं आयी।  लेकिन अंग्रेज अधिकारी इस हार को पचा नहीं पाए और उन्होंने दोबारा से रामगढ पर हमला करने कि योजना बनाने लगे | उधर योजनावत तरीके से पहले से ही भेजे गए रामगढ़ के कुछ सिपाही घुघरी के पहाड़ी क्षेत्र में पहुंचकर अंग्रेजी सेना की प्रतीक्षा करते हुए चौक्कने थे।

 

 

लेफ्टिनेंट वर्टन के नेतृत्व में नागपुर की सेनाएं बिछिया विजय कर रामगढ़ की ओर बढ़ रही थी जिसकी जानकारी वाडिंग्टन को पहले से ही थी | इसलिए स्थिति को समझते हुए वाडिंग्टन घुघरी की ओर बढ़ा और 15 जनवरी 1858 को घुघरी पर अंग्रेजों का नियंत्रण हो गया। रानी उनके इस तरह हुए आक्रमण हो समझ नहीं पाई उन्होने बड़ी बहदुरी से उनका मुक़ाबला किया और इसके दो महीनों के अंदर ही रामगढ़ घिर गया लेकिन रानी के बहादुर सिपाहियों एवं अंग्रेजी सेना में संघर्ष चलता रहा। विद्रोही सिपाहियों की लगातार हो रहे युद्धो के कारण उनकी संख्या में निरंतर कमी आती जा रही थी धीरे-धीरे बार-बार आक्रमण होने के कारण किले की दीवारें भी रह-रहकर ध्वस्त होती जा रही थी। रानी ने बड़ी वीरता से जाने कितनों को मौत के घाट उतार दिया और जाने कितनों के अंग भंग करते हुए वीरता की एक अद्भुत मिशाल पेश की और युद्ध करते-करते जाने कब और कैसे हुए अंग्रेजी सेना का घेरा तोड़ देवहारगढ़ के जंगल में प्रवेश कर गई अंग्रेजी सेना उनकी बहादुरी और वीरता को देखते रह गई | रामगढ़ के शेष सिपाहियों ने जब तक उनके शरीर में जान थी अंग्रेजी सेना को रोके रखा और युद्ध में वीरता को प्राप्त हो गए | अंग्रेजी सेनाओं ने अपनी शत्रुता को ध्यान में रखते हुए रामगढ़ किले को ध्वस्त कर दिया और रामगढ़ को अपने अधिकार में लिया।

अप्रकाशित व मौलिक

Views: 314

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PHOOL SINGH on June 24, 2020 at 3:19pm
समीर साहब आपका कोटि कोटि धन्यवाद एक इतिहास में वीर नारियों की चरित्र का संग्रह कर रहा उसी से लिखा जहां से भी जो भी सूचना प्राप्त हुई उसके अनुसार लिखने का प्रयास कर रहा हूँ अपना कीमती वक़्त देने के लिए आपको बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Samar kabeer on June 24, 2020 at 2:26pm

जनाब फूल सिंह जी आदाब, सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
5 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
7 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service