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दिवस के अवसान का,भ्रम नहीं पाले कोई,
चाॅद की आमद के पीछे,
आएगी ऊषा नई ,
ऊध्व॔मुख सूरजमुखी से होड़ लेना चाहती हूँ ..एक
गहरी नींद सोना चाहती हूँ ।
अश्रुओं में बह गई है,
विगत की अंतिम निशानी,
पलकों पर सजने लगी है,
प्रीत की नूतन कहानी,जिंदगी की जीत पर ,
मन को ड़ुबोना चाहती हूँ ।
एक गहरी नींद सोना चाहती हूँ ।
मैं सृजन के शब्द होकर,
दिग् दिगंत में उड़ सकूँ,
धूप का सा आचरण ले,
कालिमा से लड़ सकूँ,
राख से जन्मे विहग के,पंख होना चाहती हूँ ।
एक गहरी नींद ..
दद॔ झरते पात का,
जिसने किया अनुभूत है,
आत्मा की शुद्धता का ,
बस वही तो गीत है,
उस चिरंतन गीत का,
संगीत होना चाहती हूँ ।एक गहरी नींद सोना चाहती हूँ ।
अन्विता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by Anvita on June 5, 2020 at 8:52pm
आदरणीय समर कबीर जी अभिवादन स्वीकार करें. हौसला बढ़ाने हेतु बहुत बहुत आभार ।मेरे लिए आप लोगों से जुड़ना सौभाग्य की बात है ।पुनः धन्यवाद ।अन्विता ।
Comment by Samar kabeer on June 5, 2020 at 11:40am

मुहतरमा अन्विता जी आदाब,अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on June 5, 2020 at 11:40am

मुहतरमा अन्विता जी आदाब,अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Anvita on June 4, 2020 at 6:47pm
माननीय अमीरूददीन साहब प्रणाम ।आपका हार्दिक धन्यवाद ।रचना पसंद आई जानकर अच्छा लगा ।सादर।अन्विता ।
Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 4, 2020 at 5:18pm

वाह। सुश्री अन्विता जी, ग़ज़ब का चिन्तन और सृजन है। मन के तारों को झंकृत कर दिया आपकी रचना ने। 

हृदय तल से बधाईयाँ स्वीकार करें। 

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