For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Anvita's Blog (12)

एकाकी चांद

ऑख की,ड़िबिया में,
बंद,
सपने हैं,
मौसम की खुनक,
सांसो के रास्ते,
अब,नहीं उतरती,
मन की,
सीढ़ियाँ ....
हालाँकि,
उदासी के दियों में,
भरपूर है तेल,
और कामना की बातियाॅ ....
रात भर
जलती है ।
होड़ लेती हैं, स्मृतियाँ...तारों से !
चांदनी के इद॔-गिद॔,
मृत सपनों का,
वलय है, एकाकी चांद के आंसू ...
रात भर टपकते हैं,
सुबह,पत्तों पर,
धोखा होता है,
ओस का।

अन्विता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Anvita on June 22, 2020 at 9:58pm — 4 Comments

"स्मृतियाँ "

दुःखते हुए पांव हैं बाकी,
रिसते हुए घाव हैं बाकी,
आशाएँ जो छोड़ गईं,
उजड़े हुए गाँव हैं बाकी।
गीत अधर पर ठहरे-ठहरे
अश्रु पर पलकों के पहरे,
सहमे- सहमे सच पर हावी,
झूठ के निम॔म दांव हैं बाकी ।
सतरंगी सपनों के ड़र से,
लहरों से समझौते करते,
ठीक किनारे उलट गई जो,
स्मृतियों की नाव है बाकी...।

अन्विता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Anvita on June 18, 2020 at 9:49pm — 6 Comments

"समय नहीं है"

चुप है समय,

दिशाओं के अनुमान में,

भ्रमित और आहत है मन

सत्य के संधान में,

शब्द करते हैं सवारी,

नुकीले अस्त्रों की,

शब्द,

बनना चाहिए था

जिन्हें मरहम!

अंगुलियां उठती हैं

सामर्थ्य पर;

थाम सकतीं थीं जो,अशक्तता ...

अंगुलियां जो,ढाल सकतीं थीं

दहकते लावे को

फूल की शक्ल में; शून्य हैं ऑखे,

ऑखे, जो संजो सकतीं थीं

पल-पल का इतिहास,

आहत है मन,

जो प्रहरी था सच का,

निःशब्द है अपने आखेट पर,

अभी समय नहीं… Continue

Added by Anvita on June 14, 2020 at 1:18pm — 2 Comments

"नियति "

आस छोड़ी न थी,
न,प्रयास बौने थे,
जीतना कहाँ
संभव होता
हम
नियति के हाथों के,
खिलौने थे।
ओढे, बिछाए,
तह लगाकर
रख दिए
हमारी इच्छाओं के
ही तो,बिछौने थे।

अन्विता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Anvita on June 13, 2020 at 1:10pm — 2 Comments

चाहती हूँ

दिवस के अवसान का,भ्रम नहीं पाले कोई,

चाॅद की आमद के पीछे,

आएगी ऊषा नई ,

ऊध्व॔मुख सूरजमुखी से होड़ लेना चाहती हूँ ..एक

गहरी नींद सोना चाहती हूँ ।

अश्रुओं में बह गई है,

विगत की अंतिम निशानी,

पलकों पर सजने लगी है,

प्रीत की नूतन कहानी,जिंदगी की जीत पर ,

मन को ड़ुबोना चाहती हूँ ।

एक गहरी नींद सोना चाहती हूँ ।

मैं सृजन के शब्द होकर,

दिग् दिगंत में उड़ सकूँ,

धूप का सा आचरण ले,

कालिमा से लड़ सकूँ,

राख से जन्मे विहग के,पंख होना…

Continue

Added by Anvita on June 4, 2020 at 12:00pm — 5 Comments

"लोग"

लोग इससे ज्यादा

क्या करेंगे ...छीन लेंगे हॅसी

रोक लगा देंगे कहकहों पर,और

घोंट देंगें दम..

मुस्कुराहटों का।

लोग ,लगा देंगे प्रतिबंध

गति,लय और लोच पर।

कामनाओ के छतनार वृक्ष की

हर ड़ाली काट-छाॅट कर;बना देंगे बोनसाई, और

रोंप देंगे,

गमलों में ।

छीन लेंगे कलम,या फिर, काट देंगे अंगुलियां ।

क्रिया के पश्चात प्रतिक्रिया, एक

शाश्वत सत्य है; समय का पहिया

कभी तो घूमेगा प्रतिकूल, और

लौटाएगा मिट्टी को,उसकी सारी ऊव॔रा,… Continue

Added by Anvita on May 31, 2020 at 3:49pm — 10 Comments

बेहतर तो

भीगी दुःखती ऑखे लेकर,

हम सपनों को पाने निकले,

मन के चिटके दप॔ण में,

गीला अक्स सजाने निकले।

जीवन शतरंज की गोटी, सिर्फ

हराए हरेक चाल पर,ऊपर बैठा

गजब खिलाड़ी ,हम भी

क्या दीवाने निकले ।

ऑख तौलती भार स्वप्न का,

होंठ हंसी की परिधि नापते,

सौदागर इस बस्ती में, क्या- क्या तो

कमाने निकले ।

महज उदासी पाई मन ने,

अपनेपन के रिश्तों में,

कुछ कदमों तक साथ चले थे,

बेहतर तो बेगाने निकले।





अन्विता ।

मौलिक एवं…

Continue

Added by Anvita on May 18, 2020 at 12:30pm — 4 Comments

ताना-बाना

उलझे-उलझे से,ताने-बाने को
फिर- फिर
नये रंग में रंगता है,
मेरी किस्मत का रंगरेज,
पल-पल
रंग
बदलता है ।
उजला कभी,कभी स्याह
पीला कभी नीला,जैसे
सुखःदुख;
मन की हांड़ी में,
धींमे-धींमे खदकता है,
छल की रेशमी
चादरों में, लिपटे
सुनहरे,रूपहले सपने उलट-पलट
मिलाता है;पर,
नियति का,बल.....
नहीं
निकलता है ।


अन्विता ।


मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Anvita on May 18, 2020 at 8:13am — 7 Comments

"अब नहीं "

इस अंधेरे पक्ष में

दद॔ की

टीसती लकीरें

छुपा दी हैं

चाँदनी की

सिमटी तहों में ,अब;

अकेला

निकले भी

चांद तो

नहीं दिखेंगी

झुर्रियाँ, उदासी की,

उसके पीले चेहरे में

बांधकर ड़ाल दी हैं

उदासियों की गठरी,

चुप के अंधे कुएँ में

बचाकर;भावनाओं के

छापामारों से,

कामनाओं के सूखे बीज

दबा दिए हैं,

मन की बंजर धरती में; जानता है मन

अब नहीं हरियाएगा

कोई सावन....इस जीवन में ।



अन्विता

मौलिक एवं… Continue

Added by Anvita on May 16, 2020 at 8:54pm — 6 Comments

"पालकी आंसुओं की"

लम्हा- लम्हा
जहाँ पे भारी था, होंठ अनवरत
मुस्कुराए हैं
सच के साये से भी,जहाँ, रहा परदा
रिश्ते ऐसे भी कुछ निभाए हैं ।
फांस सी कभी हथेली में, कभी तलवों के
फूटते छाले
प्यार की हर नदी रही सूखी
दूर तक वृक्ष हैं
न,
साये हैं।
रेत तपती है
पांव के नीचे,
होंठ चटके हैं
प्यास से,लेकिन;
भेज दो स्वप्न
सब विदा करके,
पालकी आंसुओं की
लाए हैं ।

अन्विता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Anvita on May 10, 2020 at 11:23pm — 3 Comments

"माँ नहीं है "

माँ नहीं है
बस-नहीं है
कोई धागा कोई कतरन
कोई स्वेटर कोई उधड़न
या जिंदगी की
कोई उलझन
माँ वहां दिखती है ।
सिकुड़ते रिश्ते
उधड़ती तुरपाई
तुम्हारे नाम रिश्तों की
परछाई ।
माँ नहीं भूली तुम्हें मैं
मेरे बच्चों में निहित तुम्हारी
परछाई ।

अन्विता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Anvita on May 9, 2020 at 6:03pm — 2 Comments

क्या पता ।

विदा लेता है कोई मन से इस तरह
कि जैसे
पलक भर झुकी हो
और दृश्य बदल जाए।
रात भर ऑसुओ से भीगा गिलाफ तकिये का
सुबह धुल जाए।सूजी हुई आंखें
पानी के छींटो से ताजा दम हो
काजल और बिखर जाए।बाकी हो बहुत कुछ कहना
और सांस का तार टूट जाए।
सूरज पर रहती हैं निगाह चौकस
चांद का क्या पता, कब निकले कब
ढल जाए।

.
मौलिक एवं अप्रकाशित
अन्विता ।

Added by Anvita on May 7, 2020 at 9:00pm — 5 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service