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उलझे-उलझे से,ताने-बाने को
फिर- फिर
नये रंग में रंगता है,
मेरी किस्मत का रंगरेज,
पल-पल
रंग
बदलता है ।
उजला कभी,कभी स्याह
पीला कभी नीला,जैसे
सुखःदुख;
मन की हांड़ी में,
धींमे-धींमे खदकता है,
छल की रेशमी
चादरों में, लिपटे
सुनहरे,रूपहले सपने उलट-पलट
मिलाता है;पर,
नियति का,बल.....
नहीं
निकलता है ।


अन्विता ।


मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment

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Comment by Anvita on May 25, 2020 at 9:32am
हृदयतल से आपका धन्यवाद ।सादर प्रणाम ।
Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 25, 2020 at 9:15am

आदरणीया अन्विता जी यह कविता हमें बता रही आपके भीतर 

 कारयित्री भावयित्री प्रतिभा भरी हुई है उस प्रतिभा को हृदयतल से बधाई

Comment by Anvita on May 21, 2020 at 4:00pm
महोदय उत्साह वध॔न हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ।सादर अभिवादन ।
Comment by Anvita on May 21, 2020 at 3:01pm
महोदय सादर प्रणाम उत्साह वध॔न हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 21, 2020 at 1:32pm

आ. अन्विता जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on May 21, 2020 at 12:10pm

मुहतरमा अन्विता जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Anvita on May 18, 2020 at 11:39am
परम आदरणीय महोदय क्षमा चाहती हूँ ।नया-नया टाइप करना सीखा है।बहुत सारी चीजों से अनभिज्ञ हूँ ।कृपया मार्गदर्शन करते रहें ।

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