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ग़ज़ल : रूबरू अब सलाम होता है… "राज"

वजन : 2122 1212 22

वक़्त किसका गुलाम होता है 

कब कहाँ किसके नाम होता है 

 

कल तलक जिससे था गिला तुमको 

आज किस्सा तमाम होता है 

 

खास है  जो  मुआमला अपना 

घर से निकला तो  आम होता है 

 

आज जग में सिया नहीं मिलती 

औ’ किताबों में राम होता है 

 

चिलमनो में मुहब्बतें कल थी 

अब तमाशा ये आम होता है 

 

अश्क कल दर्द के जो पीते थे 

हाथ में आज जाम होता है  

 

रास्ते तो करीब आ जाएं  

दूर कितना  मुकाम होता है  

 

रंजिशे तुम जहां कहीं पालो    

 मौन  उस पर  विराम  होता है 

 

‘राज’ ख्वाबों  में ही नहीं मिलती 

रूबरू अब सलाम होता है 

*******************************

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2013 at 10:49am

आदरणीय सौरभ जी दिल से प्रभूत आभार आपका 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 3, 2013 at 10:41am

मेरे कहे को मान देने के लिए मैं हृदय से आभारी हूँ, आदरणीया राजेश कुमारीजी.

सहमति से स्वीकार्य इन परिवर्तनों को आपकी ग़ज़ल पर लागू किया जाता है, आदरणीया..

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2013 at 9:37am

आदरणीय सौरभ जी ग़ज़ल पर आपकी तारीफ़ सुनकर मेरा भी मन झूम गया  है आपने जो इस्स्लाह दी है सही दी है। मेरी डायरी में  एक शेर में पहले से ही तो था इसमें पोस्ट करते वक़्त वो कर दिया था  दूसरे  शेर में बस के स्थान पर औ ही ठीक लगेगा। तहे दिल से आपका बारम्बार शुक्रिया । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 3, 2013 at 7:47am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, बधाई बधाई बधाई

मन झूम गया ग़ज़ल पढ कर.. .

पुनः बधाई

 

संप्रेषण थोड़ा और कसा जाय, जैसे इन शेरों को देखें -

पास है  जो  मुआमला अपना 

घर से निकला वो  आम होता है ...  .  सानी में वो को तो करना बहुत कुछ कहने लगता है

 

आज जग में सिया नहीं मिलती 

बस किताबों में राम होता है....... .....  सानी में बस को औ’ किया जाय तो मिसरों में एकसार भी बना रहेगा और बात ठोस हो कर विश्वास के साथ आयेगी. 

ऐसा मेरा मानना है.

एक अच्छी ग़ज़ल के लिये पुनः धन्यवाद.

शुभम्


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2013 at 10:50pm

प्रिय महिमा श्री जी आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by MAHIMA SHREE on July 2, 2013 at 10:48pm

आदरणीय राजेश दी .. बहुत ही खुबसूरत गजल ... क्या बात है !!!! बहुत -२ बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2013 at 8:57pm

आदरणीय सानी कर्तार्पुरी जी ग़ज़ल  आप जैसी शख्सियत से  सराहना पाकर धन्य हुई तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2013 at 8:53pm

प्रिय गीतिका  ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया आपकी सराहना सर आँखों पर  तहे दिल से आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2013 at 8:52pm

आदरणीय शिज्जू एस जी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया हेतु तहे दिल से आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2013 at 8:51pm

जीतेन्द्र पास्तारिया जी ग़ज़ल पर आपकी प्रशंसा से दिल हर्षित है पाठक को लेखन  आ जाए और क्या चाहिए दिल से आभार आपके आत्मीय शब्द मिले तहे दिल से आभार मेरा लिखना सार्थक हुआ 

कृपया ध्यान दे...

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