For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दीप के हौसले याद आने लगे (बह्र-ए-मुत्दारिक -16 रुक्ऩी )

212  /  212 /  212 /  212  /  212 /  212 /  212 / 212

-

चाँद से रूठ के जब गई चाँदनी, कुर्बतो-फासले याद आने लगे 

जब हवा में नमी आज छाने लगी, दो नयन बावले याद आने लगे

 

वो अमरबेल तो पेड़ को खा रही, शाख के फूल से शबनमी जा रही

देखता ही रहा गौर से जो उसे, कुछ दबे मामले याद आने लगे

 

सच बताओं मुझे ये कहाँ है लिखा, आज क़ानून का मैं तलबगार हूँ

फिर अदालत कभी तो कभी मुफ़लिसों के रुके फैसले याद आने लगे

 

रात बाकी अभी बात बाकी अभी, दीप मत तीरगी से निभा दुश्मनी

रात ने टाल दी बात भी वो मगर दीप के हौसले याद आने लगे

 

दो परिन्दें जुदा आसमां के हुए, देख के एक तस्वीर छाने लगी

वो गली, वो सड़क, मोड़ के पेड़ पे शाम के मरहले याद आने लगे

 

है शिवालें कहीं तो कहीं मस्जिदें, कांपता दिल गली से निकलते हुए

यूं गुज़र के गए थे जो पिछले बरस, बेरहम जलजले याद आने लगे

 

भागती ज़िन्दगी में कभी दो घड़ी, देख के यूं सड़क पे जवाँ कारवां

मस्तियाँ, कान की बालियाँ देखते इस्कुली मनचले याद आने लगे

 

 

-------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित) - मिथिलेश वामनकर 
-------------------------------------------------------

बह्र-ए-मुत्दारिक मुइज़ाफ़ी मुसम्मन सालिम (16 रुक्ऩी )

अर्कान – फाइलुन/फाइलुन/ फाइलुन/फाइलुन/ फाइलुन/फाइलुन/ फाइलुन/फाइलुन

वज़्न –   212  /  212 /  212 /  212  /  212 /  212 /  212 / 212

Views: 866

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 28, 2015 at 1:38pm

ग़ज़ल का यह प्रयास आपको पसंद आया, मन खुश हो गया. इस सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ आदरणीया कांता जी.

Comment by kanta roy on July 28, 2015 at 10:03am
रात बाकी अभी बात बाकी अभी, दीप मत तीरगी से निभा दुश्मनी
रात ने टाल दी बात भी वो मगर दीप के हौसले याद आने लगी ....... बहुत खूब गजल कही है आपने । वाह !!!!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 18, 2014 at 11:10am
ग़ज़ल के संशोधन को अप्रूवल के लिए आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 17, 2014 at 7:42pm
गुणीजनों के मार्गदर्शन से ही दोष निवारण हो पायेगा । मुझे इस के लिएकोई नया काफ़िया नहीं सूझ रहा है

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 17, 2014 at 7:40pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर आपने रचना को समय दिया और बेहतरीन सुझाव दिया उसके लिए बहुत बहुत आभार धन्यवाद। शीघ्र ही आपके निर्देशानुसार संशोधन करता हूँ शेष दो अशआर के लिए भी सहयोग और आशीर्वाद चाहता हूँ । मैंने घोसले और मनचले सोचा है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 17, 2014 at 8:56am

आ. मिथिलेश भाई , चाहें तो आप निम्ननुसार सुधा कर सकते हैं , अगर पसन्द आये तो ---

चाँद से रूठ के जब गई चाँदनी, कुर्बतो-फासले याद आने लगे 

जब हवा में नमी आज छाने लगी, दीद के मरहले याद आने लगे 

इससे दोष दूर हो जायेगा , ग़ज़ल खारिज नही होगी  , काफिले और दाखिले वाले शे र सुधार लीजियेगा  न भी सुधरे तो गज़ल मे पाँच अशआर बच ही रहेंगे । सोच के देखियेगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 17, 2014 at 3:58am

काफिया मे इता दोष को सुधारने का प्रयास कर रहा हूँ पर बात नहीं बन रही ... गुनीजनों से मार्गदर्शन का निवेदन है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 16, 2014 at 10:38pm

आदरणीय  vijay nikore जी आपने रचना को समय दिया, आभार धन्यवाद 

Comment by vijay nikore on December 16, 2014 at 9:28pm

बहुत सुन्दर भाव... बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 16, 2014 at 8:34pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपने सही कहा, दोष तो आ गया है ..सुधारने का प्रयास करता हूँ .. लेकिन कठिन लग रहा है... आपके आदेशानुसार गुनीजनों की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करता हूँ. आपने रचना को समय दिया और मार्गदर्शन भी, बहुत बहुत आभार धन्यवाद 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"बहुत आभार आदरणीय ऋचा जी। "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार भाई लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है।  आग मन में बहुत लिए हों सभी दीप इससे  कोई जला…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"हो गयी है  सुलह सभी से मगरद्वेष मन का अभी मिटा तो नहीं।।अच्छे शेर और अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ.…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रात मुझ पर नशा सा तारी था .....कहने से गेयता और शेरियत बढ़ जाएगी.शेष आपके और अजय जी के संवाद से…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. ऋचा जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. तिलक राज सर "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. जयहिंद जी.हमारे यहाँ पुनर्जन्म का कांसेप्ट भी है अत: मौत मंजिल हो नहीं सकती..बूंद और…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"इक नशा रात मुझपे तारी था  राज़ ए दिल भी कहीं खुला तो नहीं 2 बारहा मुड़ के हमने ये…"
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी ख़ूब शेर कहे आपने बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया आपने बधाई स्वीकार कीजिए  सादर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service