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तेवर देखे ठंड के , थर-थर काँपे गाँव ।
सभी तलाशे धूप को , सूनी लगती छाँव ।।

यार बढ़े हैं आज तो , ठंडक के वो भाव ।
बस्ती के हर मोड़ पर , सुलगे देख अलाव ।।

बदला मौसम ने ज़रा , देखो अपना रूप ।
कितनी प्यारी लग रही , जाड़े की ये धूप ।।

अदरक वाली चाय से , होती सबकी भोर ।
बच्चों का भी शाम से , थम जाता है शोर ।।

किट-किट करते दाँत हैं , काँप रहे हैं हाथ ।
गर्मी लाने के लिये , गर्म चाय का साथ ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by rajesh kumari on December 12, 2017 at 1:19pm

वाह वाह बहुत उम्दा दोहे हुए आद० मोहम्मद आरिफ जी ...और कांपते हुए ही पढ़ रही हूँ :))))))))

Comment by somesh kumar on December 12, 2017 at 9:59am

मौसम ने करवट ली ,बढ़े ठंड के भाव 

दोहें आपके पढ़ हमें ,पास लगा अलाव 

बहेतर सर्दी फ़ैलाने वाले दोहों के लिए बधाई |

Comment by Mohammed Arif on December 12, 2017 at 7:50am

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय नादिर खान साहब ।

Comment by Mohammed Arif on December 12, 2017 at 7:49am

आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब आपकी दाद-ओ-तहसीन का बहुत-बहुत शुक्रिया । मेरा लेखन सार्थक हो गया ।

Comment by नादिर ख़ान on December 11, 2017 at 5:17pm

जनाब मोहम्मद आरिफ साहब ठण्ड का एहसास कराते सुन्दर दोहे कहे आपने, ढेरों मुबारकबाद आपको ...

Comment by Samar kabeer on December 11, 2017 at 2:30pm

जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,जाड़े के मौसम पर बढ़िया दोहे लिखे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

पहले दोहे की दूसरी पंक्ति में 'तलाशे' को "तलाशें" कर लें ।

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