For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नशीली आग़ोश ....

अरसा हुआ तुमसे बिछुड़े हुए 

ख़बर ही नहीं
हम किस अंधी डगर पर
चल पड़े
हमारी गुमराही पर तो
कायनात भी खफ़ा लगती है

बाद बिछुड़ने के
मुददतों हम
आईने से नहीं मिले
ख़ुद अपनी शक्ल से भी हम
नाराज़ लगते हैं


तुम्हें क्या खोया
कि अँधेरे हम पर
महरबान हो गए
यादों के अब्र
चश्मे-साहिल के
कद्रदान गए
दरमानदा रहरो की मानिंद
हमारी हस्ती हो गयी

इश्क-ए-जस्त की फ़रियाद
करें भी तो किससे


दिल बेदर की दीवारों में
कैद हो गया

अब शब की ख़बर नहीं
सहर भी जाने कब गुजर जाती है
तुमसे मिलने में
तारीकियों की साज़िश है
जाने किन सुलगते ख़्वाबों की
चंद साँसों में आतिश है


जाने कब वो आहट होगी
जो मुझे मेरेअफ्सुर्दा
लम्हों की क़बा से
रिहा कराएगी
वो नशीली आग़ोश
इस मर्गे-बदन को
ज़िंदगी दे जाएगी

दरमानदा=भटका हुआ , रहरो=मुसाफ़िर,
जस्त =चोट ,मर्गे-बदन=बदन की मौत

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 785

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on July 20, 2016 at 10:04pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आपकी स्नेहिल आत्मीय प्रशंसा मुझे सदा नए सृजन के लिए उत्साहित करती रहती है। अपने मोहक शब्दों द्वारा प्रस्तुति का मान बढ़ाने का हार्दिक हार्दिक आभार।  आदरणीय प्रस्तुति में चश्मे-साहिल से मेरा अभिप्राय आँखों के किनारों से था और उसमें भी परोक्ष रूप से आँखों में छुपे सागर के किनारों से था। मैंने अपने भाव को इन शब्दों में पिरोने की कोशिश की है। यदि भाव प्रदर्शन में कोई त्रुटि नज़र आ रही हो तो कृपया मार्गदर्शन कर बन्दे को अनुग्रहित करें।  सादर  .... 

Comment by Samar kabeer on July 20, 2016 at 6:16pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत जज़्बाती अतुकांत कविता लिखी है आपने वाह बहुत सुंदर,दिल से बधाई स्वीकार करें ।
"चश्मे साहिल"का अर्थ "साहिल की आँख"लिया है या कुछ और कृपया बताने का कष्ट करें ।
Comment by Sushil Sarna on July 20, 2016 at 2:37pm

आ. अशोक रक्ताले जी भाई साहिब प्रस्तुति को अपने शीरीं लफ़्ज़ों से इज़्ज़त बख्शने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 20, 2016 at 1:47pm

जाने कब वो आहट होगी
जो मुझे मेरेअफ्सुर्दा
लम्हों की क़बा से
रिहा कराएगी
वो नशीली आग़ोश
इस मर्गे-बदन को
ज़िंदगी दे जाएगी.........वाह ! वाह ! क्या खूब भावपूर्ण सृजन है.

आदरणीय सुशील सरना साहब सादर नमन, बहुत सुंदर अतुकांत की प्रस्तुति.बहुत-बहुत बधाई.सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service