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ग़ज़ल :- जान के दावेदार थे सदमे

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़ाइलुन/फ़ेलान

जान के दावेदार थे सदमे
मै अकेला, हज़ार थे सदमे

इस क़दर पाइदार थे सदमे
मेरे हमदम थे,यार थे सदमे

मेरे दिल में मुक़ीम हैं अब तो
कल तलक बे दियार थे सदमे

कोई भी बच नहीं सका इन से
सब के दिल पर सवार थे सदमे

कोई तामीरी काम , नामुम्किन
सारे तख़रीब कार थे सदमे

'मीर'-ओ-'ग़ालिब' के बाद दुनिया में
सिर्फ मेरे ही यार थे सदमे

सोच ने मेरी इनको जन्म दिया
ज़ह्न का ख़लफ़िशार थे सदमे

आस्तीनों में छुप के आए 'समर'
किस क़दर होशियार थे सदमे

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2015 at 10:59am

बहुत प्रभावी हृदयभेदक ग़ज़ल हुई है आ० समर कबीर जी 

हर शेर लाजवाब है 

ढेरों बधाई इस असरदार ग़ज़ल पर 

सादर 

Comment by दिनेश कुमार on September 30, 2015 at 4:40am
बेहतरीन ग़ज़ल कही है आदरणीय समर साहब। एक एक शे'र बहुत दमदार। वाह वाह वाह...!!! मतला सबसे अचछा लगा।
Comment by Rahul Dangi Panchal on September 28, 2015 at 11:14pm
बहुत सुन्दर आदरणीय समर कबीर साहब जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 28, 2015 at 3:40pm

कमाल .... ऐसी कठिन रदीफ़ और उस पर छोटी बह्र 

शानदार ग़ज़ल हुई है अशआर एक से बढ़कर एक हुए है. 

वाह .... दिल से दाद कुबूल फरमाएं 

Comment by Ravi Shukla on September 28, 2015 at 1:22pm

आदरणीय समर कबीर साहब आदब  शानदार ग़ज़ल शिल्‍प से बेहद खूबसूरत कथ्‍य है इस गज़ल में ।

'मीर'-ओ-'ग़ालिब' के बाद दुनिया में
सिर्फ मेरे ही यार थे सदमे   थोड़े में कहें तो पीड़ा संप्रेषित हो रही है । आपने इसका मरहम भी उपर के एक शेर में कह दिया है

कोई भी बच नहीं सका इन से
सब के दिल पर सवार थे सदमे .... तो दुआ है हमारी .....   ग़ज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 28, 2015 at 10:26am

वाह  आदरणीय सर कबीर साहिब  शानदार , जानदार  फुल प्रूफ

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