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'मुखाग्नि'- (लघु कथा)

आज सुबह उस चाय की गुमटी पर गरमा गरम चाय पीते-पीते कुछ मुखों से शब्दों के अग्नि-बाण से निकल रहे थे।
"अरे सुना तुमने, मज़हब की बंदिशें तोड़ ग़रीब दोस्त संतोष को मुस्लिम युवक रज़्ज़ाक ने कल मुखाग्नि दी !"
यह सुनकर एक पंडित जी बड़बड़ाने लगे-

"सारा अंतिम संस्कार अपवित्र हो गया, पता नहीं आत्मा को कैसे शान्ति मिलेगी ?"
इस पर एक शिक्षित युवक बोला-

"अरे ये सब वो धर्मान्तरित मुसलमान हैं जो आज भी अपने मूल धार्मिक कर्मकांड गर्व से करते हैं।"
तभी एक दाढ़ी वाले ने दाढ़ी पर हाथ फेरते हुये धीरे से कहा-

"सही कहते हैं हमारे चच्चाजान, इस्लाम संकट में है !"
एक छिछौरे ने चुटकी लेते हुए कहा-

"अरे, मुझे तो लगता है उसकी पत्नी से पहले से कोई यारी रही होगी !"
इन बातों को सुनकर चाय वाला बोला-"छोड़ो भी, रात गई, बात गई, आप तो चाय पियो। मेन बात तो समझ नईं रये, मूंह चलाये जा रये !"

मौलिक व अप्रकाशित
शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी म.प्र.

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Comment

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 30, 2015 at 8:33pm

आदरणीय शेख साहब, अभी हाल ही में यह खबर आयी थी. आपने इस खबर के हर पहलू पर जो पैनी धार चलायी है ....ग़जब!

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 23, 2015 at 12:32pm
परम आदरणीय गुरु जी, सबसे पहले तो मैं ओ.बी.ओ. प्रशिक्षण शिविर/अभियान के आज के ताज़े सबक़ के लिए तहे दिल शुक्रिया अदा करना चाहूँगा, जिसके तहत किसी रचना की समीक्षा लिखने का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत कर समीक्षक बनने का स्वप्न देखने वाले इस नव रचनाकार को बेहतरीन प्रशिक्षण हासिल हुआ ।
इस के बाद मैं यह कहना चाहता हूँ कि यकीन मानिये अख़बार के प्रथम पृष्ठ के लघु कोलम के एक समाचार मात्र को पढ़कर विचारों की लहर सी उठी और मोबाइल उठाकर लेखनी को बहा दिया....कथा के अंतिम छोर पर पहुंचने पर पता चला कि यह तो अच्छी खासी लघु कथा बन गयी !
मेरी इस रचना पर आपकी उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी ने मुझे धन्य कर दिया। यह मुझे निरंतर ऊर्जा देती रहेगी.....असीम प्रोत्साहन प्रदान करती रहेगी, मुझे पूरा विश्वास है।
ओबीओ लघु कथा गोष्ठी-6-"प्रत्युत्तर"- शुरू होने के पूर्व हासिल इस हौसला अफज़ाई से मेरी लेखनी अवश्य ही लाभान्वित होगी।
आमीन।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 23, 2015 at 11:28am

बेहद मर्मस्पर्शी और प्रभावोत्पादक लघुकथा रची है भाई शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी। यह रचना कई मायनों में अति उत्तम है अत: इस लघुकथा की जितनी प्रशंसा की जाये कम होगी I दरअसल यह चंद पंक्तितों में लिखा गया एक उपन्यास प्रतीत होता है जोकि समाज के विभिन्न वर्गों की सोच को उजागर कर रहा है। इसमें एक "दोस्त" है, जो सिर्फ दोस्त है - हिन्दू या मुसलमान नहीं है। जो अपने दोस्त की अंत्येष्टि की खातिर अपने धर्म और धार्मिक मान्यतायों को ताक पर रखने से गुरेज़ नहीं करता। वहीँ मुल्ला-पंडित की संकीर्ण विचारधारा के दर्शन भी होते हैं, जिनके चेहरे के नकाब को रचनाकार ने नोच नोच कर खींचा है। तथाकथित बुद्धिजीवी का बयान भी इस लघुकथा में दर्ज है तो एक शोहदे के दिमाग की गंदगी भी है।

लेकिन इस सबसे अलग इस लघुकथा में एक चाय वाला भी है, जोकि रोज़ी रोटी की चिंता में हलकान और  तथाकथित धार्मिक कट्टरता से कोसों दूर है।
"आप तो चाय पियो। मेन बात तो समझ नईं रये, मूंह चलाये जा रयेi"

शायद ये खुद भी सच्चाई से नावाकिफ है, किन्तु उसका उपरोक्त संवाद बहुत कुछ कह भी जाता है और अनकहा भी छोड़ जाता है। बहुत अरसे बाद इतनी सुन्दर लघुकथा पढ़कर आनंद आया, इस हेतु मैं लेखक को अपनी दिली बधाई देता हूँ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 11:32pm
लघु कथा का अवलोकन करने व प्रोत्साहन देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया Rajesh Kumari जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 22, 2015 at 8:20pm

अच्छी कहानी है बहुत- बहुत बधाई |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 6:46pm
तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, मेरी रचना पर उपस्थिति दर्ज कर प्रोत्साहक टिप्पणी करने के लिए।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 3:19pm

बढ़िया प्रस्तुति हुई है हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 1:01pm
तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय Virender Veer Mehta जी
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on September 22, 2015 at 10:03am
बहुत ही उम्दा और बेहतरीन रचना बनी है शहजाद भाई। बहुत सी बातो पर अनजाने मे ही प्रशन उठाती सार्थक रचना। सादर बधाई स्वीकार करे आदरणीय।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 12:37am
तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया Kanta Royजी, आदरणीय
Tej Veer Singh जी, आदरणीय
Sushil Sarna जी रचना का अवलोकन करने व प्रोत्साहन देने के लिए।

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