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तरक्की [ लघु कथा ]

"'अरे छोरा छोरी आ जाओ  देखो कित्ती सारी चीज़ें मिली हैं आज..."कम्मो भिखारन अपनी जर्जर झुग्गी में कदम रखते हुए चिल्लाई

तीनों बच्चों ने उसे घेर लिया.

"सारा दिन बगल में टीवी देखना है बस्स ..माँ भीख मांगती फिरे ...., वो आज झंडे वाला दिन है ना , देखो क्या क्या मिला है ....लड्डू ,पूड़ी नमकीन ....."कम्मो झोले में से खाने के सामान की छोटी छोटी पौलीथीन की थैलियाँ निकालने  लगी .

कचरे से मिले एंड्राइड फोन के कवर पर हाथ फिराता, बारह साल का पप्पू बोला "अम्मा, तू धीरे धीरे ,एक एक करके झोले से थैलियाँ निकालना.. , और हम सब बोलेंगे ...और दिखाओ ...और दिखाओ ....."

बगल की झुग्गी में टीवी में चल रहा नेता जी का भाषण सारी झुग्गियों में गूँज रहा था . "हम तरक्की को हर घर ,हर झुग्गी तक पहुंचाएंगे . ....."

और बारिश से ठहने की कगार पर खड़ी कम्मो की झुग्गी के अन्दर चीथड़ों में सजी तरक्की पूरे जोश से नाच रही थी ...और दिखाओ. और दिखाओ ...... 

 

 मौलिक व् अप्रकाशित

 

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Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 12, 2015 at 9:25pm
"और दिखाओ और दिखाओ।" कथा की अंतिम लाइन अपना प्रभाव तो छोड़ती ही है कथा को भी प्रभावी लुक दे जाती है। सुन्दर सफल रचना के लिये सादर बधाई आदः प्रतिभा जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on August 12, 2015 at 7:59pm

आदरणीय प्रतिभा जी,हार्दिक बधाई, बहुत मर्म स्पर्शी लघुकथा बनी है!हर किसी के खुशी और तरक्की के अलग अलग पैमाने हैं!कोई झूठन में खुश है कोई करोडों में भी दुखी!पुनः बधाई! 

Comment by Omprakash Kshatriya on August 12, 2015 at 6:33pm
दिल को छूती लघुकथा । सुन्दर अभिव्यक्ति आप की ।
Comment by Sulabh Agnihotri on August 12, 2015 at 5:55pm

समाज की विसंगति को कितनी मार्मिकता से - बगैर मार्मिक शब्दों की छौंक लगाये - यही रचनाकार की सफलता है। बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 5:14pm

बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति. आपकी वैचारिक गहनता और शब्द कौशल अद्भुत है ... इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आपको आदरणीया प्रतिभा जी 

Comment by मनोज अहसास on August 12, 2015 at 3:05pm
बहुत भावपूर्ण और गहन अभिव्यक्ति
मार्मिक चित्रण
नमन
सादर

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