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खुद को देशभक्त समझने वाले राम ने रहीम से कहा, “तुमने देशद्रोह किया है।”

रहीम ने पूछा, “देशद्रोह का मतलब?”

राम ने शब्दकोश खोला, देशद्रोह का अर्थ देखा और बोला, “देश या देशवासियों को क्षति पहुँचाने वाला कोई भी कार्य।”

बोलने के साथ ही राम के चेहरे का आक्रोश गायब हो गया और उसके चेहरे पर ऐसे भाव आए जैसे किसी ने उसे बहुत बड़ा धोखा दिया हो। न चाहते हुए भी उसके मुँह से निकल गया, “हे भगवान! इसके अनुसार तो हम सब....।”

रहीम के होंठों पर मुस्कान तैर गई।

--------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by मनोज अहसास on August 1, 2015 at 8:47pm

सर
आपने जो स्पष्टीकरण दिया है वो इस कथा को स्पष्ठ करता है या नहीं ये निर्णय मै मंच की जिम्मेदार आवाज़ों पर छोड़ देता हूँ
पर मेरी टिप्पणी पूर्ववत ही है. किसी को भी ये अधिकार नहीं है कि वो राम को लेबल की तरह इस्तेमाल करे. ये आज़ादी नहीं है आपको भी नहीं.

मैं आपका सम्मान हमेशा करता रहा हूँ. करता हूँ. स्वयं आपसे सटीक निर्णय की चाह रखता हूँ. कुछ भी निजी नहीं है. पर सटीक जवाब की चाह है छोटे भाई को क्षमा आप कर ही देगे.
सादर

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 1, 2015 at 7:38pm

आदरणीय मनोज जी।

क्या लिखना है क्या नहीं ये निर्णय करना रचनाकार का अधिकार है।

क्या प्रकाशित करना है क्या नहीं यह निर्णय करना संपादक का अधिकार है।

रचना कैसी लगी अच्छी / बुरी / बकवास यह निर्णय पाठक स्वविवेक से ले सकता  है।

पाठक यह सुझाव भी दे सकता है कि रचना को कैसे बेहतर बनाया जाय। आपके सुझाव से मुझे लघुकथा बेहतर होती नहीं लग रही है।

"हमेशा राम को ही दोषी न ठहराइए?" मैं किसी को दोषी नहीं ठहरा रहा हूँ। मैं केवल एक शब्द का अर्थ बताने की कोशिश कर रहा हूँ जिसे एक लेबल की तरह अपने फ़ायदे के लिए किसी के भी माथे पर चिपका  दिया जाता है बिना इस शब्द का अर्थ जाने।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 1, 2015 at 7:31pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  मिथिलेश जी।

Comment by मनोज अहसास on August 1, 2015 at 5:38pm
नमस्कार सर
लघुकथा के विषय में जानकारी नहीं है
ग़ज़ल ही समझ मुश्किल से आती है
फिर भी आपकी रचना के प्रति ये निवेदन है
कृपिया संवेदनशील विषयो से बचा जाये
कम से कम नाम का प्रयोग सावधानी से हो


खुद को देशभक्त समझने वाले राम ने


ये गलत है
आप लिखिए
खुद को देशभक्त समझने वाले एक व्यक्ति ने
आदमी ने
पुरुष ने
शहरी ने
आदि आदि
इससे भी आपका सन्देश पहुच जाता


हमेशा राम को ही दोषी ना ठहरिये
क्षमा प्रार्थना सहित
गलत लगे तो मुझे मार्गदर्शित कीजिये

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 3:24pm

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, बहुत शानदार लघुकथा हुई है. पंचलाइन जबरदस्त हुई है, जैसे अपने ही सच को अचानक किसी ने उघाड़ दिया हो, बिलकुल झटके से..... बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर  

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