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चंद शे'र --- 1 ---डॉo विजय शंकर

अपने में ही खोये हुए से रहते हो
तुम्हें लोग कहाँ कहाँ ढूंढते रहते हैं ||

तुमको देखा इक हादसा हो गया ,
भला आदमी एक खुद से खो गया ।

लफ्जों को यूँ तौल तौल के बोलते हो
बच्चों से क्या कभी बात नहीं करते हो ||

लफ्जों को इतना महीन क्यों तौलते हो
बात करते हो या कारोबार करते हो ||

हमेशा दिमागी उधेड़बुन में रहते हो ,
दिल की बात कभी किसी से नहीं करते हो ॥

दिखाते हो दिल से कभी नहीं उलझे हो
बहकाते हो छलावा किस से करते हो ||

कहाँ खोये खोये से रहते हो
अपने आप में क्यों नहीं रहते हो ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

Views: 634

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Comment by Dr. Vijai Shanker on April 4, 2015 at 6:06am
आदरणीय समर कबीर साहब , सादर नमस्कार , आपने मेरी साधारण सी प्रस्तुति को पसंद किया , प्रसंशा की , आपका बहुत बहुत आभार , बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 4, 2015 at 6:04am
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , आपने पसंद किया आभार , बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 3, 2015 at 9:19pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई

आपका बेहतरीन शेर

लफ्ज़ को इस कद्र क्योंकर तौलते हो तुम 

बात करते हो कि कारोबार करते हो 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 3, 2015 at 6:43pm

भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बधाई ...

Comment by Samar kabeer on April 3, 2015 at 2:34pm
आली जनाब डा.विजय शंकर जी,आदाब,भावपूर्ण अशआर के लिये बधाई स्वीकार करें |
Comment by Shyam Narain Verma on April 3, 2015 at 11:10am
सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ ।

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