For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता :- सच कहना तुम भूली मुझको ?

कविता :- सच कहना तुम भूली मुझको ?

काल चक्र के इस प्रवाह में

सुख दुःख और इस धूप छाँह में

सच कहना तुम भूली मुझको ?

 

कभी तो तुम भी रोती होगी

नियति न्याय को ढोती होगी

हूक सी उठती होगी दिल में

मन ही मन कुछ खोती होगी

सच कहना कैसा लगता है ?

 

समझौतों के साथ में  जीना

जीना पल पल छुप छुप सीना

जीवन की ऐसी ही परिणति

किसने सोचा ऐसा होगा

खामोशी के जैसा होगा

कोई आस जो प्यास अधूरी

जाने कब होगी ये पूरी ?

 

या बन जायेगा अफसाना

जग झूठा झूठा ये बाना

हमें निभाना ! तुम्हे निभाना !!

Views: 914

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on April 11, 2011 at 3:31pm
aapki tippani sar aankhon par saurabh jee thanks a lot .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 10, 2011 at 1:48pm

मैं बहुत देर तक डूबा रहा प्रथम तीन पंक्तियों में अरुणजी.  मेरी टिप्पणी को कृपया सकारात्मक आयाम के साथ स्वीकारें.

भाईजी,  बंद आँखों से लगातार.. देर तक.. व्योमवर्त्त की सीवान पर चहलकदमियाँ करता रहा..  गये-रहे कितने क्षणों को सहेजता रहा.  .. जाने कितने रोचक-विरोचक बिम्ब उभरे, विलुप्त हुये.    

यह अवश्य है कि, रचनाएँ अपने होने और उमगने के क्रम में उक्त रचयिता की भावनाएँ संप्रेषित करती हैं. एक बार नियत हो जाने के बाद रचनाएँ पाठकों की भावनाओं का पर्याय न बन जायँ तो उनका होना सफल नहीं माना जा सकता. फिर तो पंक्तियाँ एक अलहदा संज्ञा जीने लगती हैं.  रचनाकार की भावनाओं से एकदम अलग उनसे कुछ और संप्रेषित होने लगता है .. एकदम अलग पार्श्व को रंगते हुये.

इस मानक पर आपकी पंक्तियाँ मेरे मर्म को न केवल झंकृत किया है बल्कि मेरे अंतर को मानो स्वर देती लग रही हैं.. इन प्रथम तीन पंक्तियों को मेरा सादर प्रणाम. 

//काल चक्र के इस प्रवाह में

सुख दुःख और इस धूप छाँह में

सच कहना तुम भूली मुझको ? //

 

Comment by Abhinav Arun on April 8, 2011 at 10:41pm
आदरणीय श्री सौरभ जी मैं आपका आशय नही समझ पाया ?? फिर भी स्वीकार है की मैं स्वतः इस प्रकार की कविताओं के लिये जाना जाऊँ यह चाहत नही , मूलतः मैं अपनी राष्ट्रवादी सामाजिक ग़ज़लों को ही अपनी मिजाज़ की रचना मानता हूँ | टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 6, 2011 at 3:24pm

माफ़ कीजियेगा.. प्रारंभ की तीन पंक्तियों के बाद आगे बढ़ ही नहीं पाया.  और, मुझे इसका बिल्कुल अफ़सोस नहीं है.

नरम पंक्तियों के लिये हार्दिक बधाई.

Comment by Abhinav Arun on April 6, 2011 at 2:41pm
thanks rajeev jee for appreciation.
Comment by Rajeev Mishra on April 5, 2011 at 9:26pm
waah arun bhai bahut hi sunder bhav pooran rachna ( kaal chakra ka prabhav ) bahut khoob !
Comment by Abhinav Arun on April 3, 2011 at 1:51pm

आभारी हूँ धीरज जी आपके शब्द मुझे और बल देंगे !!

Comment by Dheeraj on March 28, 2011 at 11:53am
बहुत ही अच्छी रचना है अरुण जी, बिल्कुल हृदय मे छप जाने लायक ......... एक पल को तो आँखे भर आई ..... भगवान करे ऐसी सुंदर रचनाए आपके लेखनी से छलकते रहे और सब आपकी रचनाओ की भावनाओ से भावविभोर होते रहे.
Comment by Abhinav Arun on March 25, 2011 at 2:10pm
thanks aashish jee |
Comment by आशीष यादव on March 25, 2011 at 1:28am
ek sundar rachna ke liye badhai arun sir.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"तरही की ग़ज़लें अभ्यास के लिये होती हैं और यह अभ्यास बरसों चलता है तब एक मुकम्मल शायर निकलता है।…"
22 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"एक बात होती है शायर से उम्मीद, दूसरी होती है उसकी व्यस्तता और तीसरी होती है प्रस्तुति में हुई कोई…"
47 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी हुई। बाहर भी निकल दैर-ओ-हरम से कभी अपने भूखे को किसी रोटी खिलाने के लिए आ. दूसरी…"
56 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी निबाही है आपने। मेरे विचार:  भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आ इन्सान को इन्सान…"
1 hour ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122 1 मुझसे है अगर प्यार जताने के लिए आ।वादे जो किए तू ने निभाने के लिए…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आपने ठीक ध्यान दिलाया. ख़ुद के लिए ही है. यह त्रुटी इसलिए हुई कि मैंने पहले…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश जी, आपकी प्रस्तुति का आध्यात्मिक पहलू प्रशंसनीय है.  अलबत्ता, ’तू ख़ुद लिए…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलकराज जी की विस्तृत विवेचना के बाद कहने को कुछ नहीं रह जाता. सो, प्रस्तुति के लिए हार्दिक…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"  ख़्वाहिश ये नहीं मुझको रिझाने के लिए आ   बीमार को तो देख के जाने के लिए आ   परदेस…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत सुंदर यथार्थवादी सृजन हुआ है । हार्दिक बधाई सर"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. चेतन प्रकाश जी..ख़ुर्शीद (सूरज) ..उगता है अत: मेरा शब्द चयन सहीह है.भूखे को किसी ही…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"मतला बहुत खूबसूरत हुआ,  आदरणीय भाई,  नीलेश ' नूर! दूसरा शे'र भी कुछ कम नहीं…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service