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2122  2122

ये भी जीने की अदा है

ग़म खुशी में मुब्तला है

 

रात भी है चाँद भी और

चाँदनी की ये रिदा है

 

नेस्त हो जाएगा इक दिन

रेत पर जो घर बना है

 

हादसों के दरमियाँ इक

ज़िन्दगी का सिलसिला है

 

मखमली सा लम्स तेरा

सर्द जैसे ये सबा है

 

तुझमें है यूँ अक्स मेरा

तू कि जैसे आइना है

 

मैं नहीं तन्हा सफ़र में

साथ अपनो की दुआ है

 

छोर पर नाकामियों के

मंज़िलों का रास्ता है

 

साँस ही है इब्तिदा और

साँस ही तो इंतिहा है

 

नाखुशी ज़ाहिर करो तुम

दिल जलाना क्या बजा है

 

क्या कहूँ मैं क्या लिखूँ अब

चश्मे नम से क्या दिखा है

(रिदा= चादर, नेस्त= ध्वस्त, लम्स= स्पर्श, बजा= ठीक)

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 15, 2014 at 7:33pm

आदरणीय श्याम नारायण जी आपका हार्दिक आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 15, 2014 at 7:32pm

आदरणीय नीरज भाई आपका हार्दिक आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 15, 2014 at 7:31pm

आदरणीय राहुल जी आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 15, 2014 at 7:31pm
आदरणीय सोमेश भाई जर्रा नवाज़ी के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 15, 2014 at 11:56am

शिज्जू भाई

आपकी लेखनी के तो कहने ही क्या ? क्या सुन्दर गजल कही  है i आपको  इस  रचना हेतु बधाई i सादर i

Comment by ajay sharma on December 14, 2014 at 11:08pm

साँस ही है इब्तिदा और

साँस ही तो इंतिहा है

 bahut hi sunder gazal ke liye .....thanks 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 13, 2014 at 7:27pm

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें

उम्दा शेर 

मैं नहीं तन्हा सफ़र में

साथ अपनो की दुआ है

Comment by Shyam Narain Verma on December 13, 2014 at 10:23am

 हार्दिक बधाई स्वीकारें इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 12, 2014 at 10:35pm
सुन्दर बधाई हो
Comment by gumnaam pithoragarhi on December 12, 2014 at 6:26pm

नेस्त हो जाएगा इक दिन

रेत पर जो घर बना है

 

नाखुशी ज़ाहिर करो तुम

दिल जलाना क्या बजा है

साँस ही है इब्तिदा और

साँस ही तो इंतिहा है

 

वाह सर जी बहुत खूब ग़ज़ल हुई है सारे शेर कमाल हुए है बधाई

 

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