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एक ग़ज़ल..दिन सुहाने आ गए.

*एक ग़ज़ल 

बारिशों का दौर आया दिन सुहाने आ गए है.
जल भरे बादल धरा को गुदगुदाने आ गए हैं.
++
झड़ चुकीं थीं पत्तियां सब दिख रहीं वीरान सी वो,
फूल फिर से डालियों पर...... मुस्कुराने आ गए है.
++
मंदिरों ने प्रार्थना की मस्जिदों ने दी अजानें,
रहमतों को मेघ लेकर जल गिराने आ गए हैं.
++
भीगते सारे महल औ. झुग्गियाँ भी तरबतर हैं,
आग से झुलसे शहर में गम मिटाने आ गए हैं.
++
कूलरों से मुक्त होकर झाँकतीं अब खिड़कियाँ हैं,
लोइ हल्की नर्म कम्बल.. कुन कुनाने आ गए हैं.
++
सूखती सी टोंटियों में ..फिर नई सी जान आई,
भर गए नल कूप फिर से जल लुटाने आ गए हैं.
++
बिक गए छाते हजारों झूमती बरसातियाँ हैं,
जूतियाँ ठेले रखे ......फेरी लगाने आ गए हैं.
++
पोलिथिन बहती हुईं सब नालियों में जा फसी थीं,
चल पड़े सैलाब घिर कर .....घर डुबाने आ गए हैं.
**हरिवल्लभ शर्मा दि.३०.०७.२०१४ 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by harivallabh sharma on July 30, 2014 at 11:54am

आदरणीय शिज्जू शकूर साहब बहुत आभार आपने ग़ज़ल पर उत्साहवर्धन किया ..कृपया मार्गदर्शन स्नेह बनाये रखें आभार आपका.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 30, 2014 at 11:43am

आदरणीय शर्मा सर बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने सारे शेर मानीखेज़ हैं बधाई आपको l


//पोलिथिन ने गज़ब ढाया नालियों में जा फसी थीं//
इस शेर की तक्ती एक बार फिर करके देखें

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