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कहाँ होती मुहब्बत और कैसी कुर्बतें होतीं (ग़ज़ल 'राज')

1222   1222   1222   1222

जुबाँ से विष उगलते और मन में नफरतें होतीं

 न तू होता अगर दिल  में न तेरी रहमतें होतीं

 

नहीं जीवन बनाता तू धड़कता फिर कहाँ से दिल

न कोई ख़्वाब ही पलते  न कोई हसरतें होतीं  

 

जो तेरे  हाथ शानों पर नहीं होते अगर मेरे   

कहाँ से  होंसला होता कहाँ  ये हिम्मतें होतीं  

 

बिना मतलब यहाँ तो पेड़ से पत्ता नहीं हिलता

ज़माना साथ क्या देता बड़ी ही जिल्लतें होतीं  

 

न तुझ में  आस्था होती न तेरा डर अगर होता

कहाँ होती मुहब्बत और कैसी कुर्बतें   होतीं  

 

बड़ा अच्छा किया कद अर्श को ऊँचा दिया तूने   

नहीं तो बंट चुका होता लगा दी  कीमतें होतीं 

 

तेरी पाकीजगी, कमसिन ज़िया को  लूट लेते सब

सितारों चाँद सूरज की दरकती अस्मतें होतीं   

 

कज़ा की डोर हाथों में नहीं लेता अगर मालिक  

अमर होती कहर ढ़ाती विषैली ताकतें होतीं

(मौलिक एवं अप्रकाशित ) 

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Comment by rajesh kumari on July 1, 2014 at 9:51am

ब्रिजेश भैय्या ,ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ |

Comment by बृजेश नीरज on June 30, 2014 at 11:34pm
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल। आपको बहुत बधाई आदरणीया।

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Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 9:43pm

शिज्जू भाई, ग़ज़ल पर जब कोई सुलझा हुआ  ग़ज़लकार प्रतिक्रिया देता है तो उसके मायने बहुत ख़ास होते हैं ग़ज़ल पर आपकी सराहना पाकर मैं संतुष्ट हो रही हूँ कि अशआर अपने स्पष्ट प्रभाव छोड़ सके हैं ,तहे दिल से आभारी हूँ 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 30, 2014 at 9:34pm

आदरणीया राजेश दीदी वैसे तो पूरी ग़ज़ल अच्छी लगी मगर इन अशआर ने तो कमाल कर दिया बहुत बढ़िया दिली दाद कुबूल फरमाएँ।

नहीं जीवन बनाता तू धड़कता फिर कहाँ से दिल

न कोई ख़्वाब ही पलते  न कोई हसरतें होतीं  

 

जो तेरे  हाथ शानों पर नहीं होते अगर मेरे   

कहाँ से  होंसला होता कहाँ  ये हिम्मतें होतीं  

बड़ा अच्छा किया कद अर्श को ऊँचा दिया तूने   

नहीं तो बंट चुका होता लगा दी  कीमतें होतीं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 8:53pm

आ० गिरिराज जी,ग़ज़ल को आप जैसे गंभीर सुलझे हुए ग़ज़ल कार का आशीष प्राप्त हुआ और क्या चाहिए|ह्रदय तल से आभार आपका|    


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Comment by गिरिराज भंडारी on June 30, 2014 at 6:12pm

आदरनीया राजेश जी , बेहद खूबसूरत , कामयाब गज़ल कही आपने , हर शे र अपने आप मे पूरा है , जो आपने पहुँचाना चाहा सीधे दिल तक पहुँचा ॥ हर एक अशआर के लिये ढेरों दाद कुबूल कीजिये ॥


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Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 5:46pm

आ० नीलेश जी ,आप जैसे सुलझे हुए ग़ज़ल कार से सराहना पाना ग़ज़ल को सार्थक बनाने के साथ आश्वस्त होने का कारण भी बनता है ,आपकी प्रतिक्रिया तहे दिल से स्वीकार और बहुत- बहुत आभार. 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 30, 2014 at 5:41pm

बहुत खूब ग़ज़ल हुई है ..हर शेर दुसरे से बढ़कर है ..
बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल के लिए ..


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Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 5:36pm

आ० एडमिन जी, ग़ज़ल को फीचर करने हेतु दिल से लख- लख आभार| 


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Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 5:35pm

आ० डॉ गोपाल नारायण जी ,ग़ज़ल  आपकी उपस्थिति और सराहना सिक्त प्रतिक्रिया से धन्य हुई ,तहे दिल से आभारी हूँ |

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