तुम आये 
 मै खुश था 
 बहुत खुश /
 मुझे घेर लेते थे 
 या कहो 
 कोशिश करते थे 
 घेर लेने की /
 कुछ अहसास 
 उल्लास ,दर्प , ईर्ष्या ,द्धेष 
 सम्मान / कुछ मखमली से 
 कुछ अनजाने से भी 
 और मैं उड़ता था / परी कथाओं के 
 नायक की तरह
 पंखों वाले सफ़ेद घोड़े पर 
 खुशगवार मौसम में 
 चमकीली धूप में 
 नीले आसमान में /
 सर-सर चलती हवाएं से आगे 
 और आगे ।
और फिर 
 जैसा कि सुनता आया था सबसे/
 कि ऐसा ही होता है /
 तुम चले गये /मानो मुझे एक अंधे कूएँ मैं 
 फेंक दिया हो ।
मौसम बदल गये / 
 बदली भी छाती है 
 कभी कभी 
 आसमान पर /
 और मैं जमीन पर हूँ |
 लेकिन मैं खुश हूँ ,
 तुम ना आते तो 
 क्या मैं 
 वो सारे अहसास 
 कभी महसूस कर पाता । 
 सारे जहां की 
 बादशाहत पा कर 
 कैसा लगता है 
 यह मैंने तुम्हे पा कर जाना /
 अच्छा ,,,,अलविदा। । 
 नहीं । अलविदा नहीं 
 शायद तुम लौट आओ ।
मौलिक एवम अप्रकाशित 
 अरविन्द भटनागर ' शेखर'
Comment
हार्दिक बधाई आदरणीय अरविंद जी
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