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फायदा क्‍या गजल

2122 2122 1222

क्‍या शिकायत करू मैं इस जमानें से

फायदा क्‍या है किसी को बतानें से

अब मजारो की तरफ यूँ न देखो तुम

आ सकेगें हम न आँसू बहानें से

बदनसीबी साथ मेरे उम्र भर थी

सो रहा हूँ चोट खा कर जमानें से

यार मेरे तुम बहाओ न अश्‍को को

फायदा क्‍या अब यहाँ दिल जलानें से

रूठ कर हम से चले ही गये वो जब

साथ ना अब तो मिले कुछ बतानें से

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी गहमर गाजीपुर

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Comment by Akhand Gahmari on April 17, 2014 at 8:20pm

उत्‍साहवर्धन के लिये हम आपके आभारी है आदरणीय laxman dhami जी

Comment by Akhand Gahmari on April 17, 2014 at 8:19pm

उत्‍साहवर्धन के लिये हम आपके आभारी है आदरणीय अनुराग सिहं जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 17, 2014 at 7:39pm

आदरणीय अखंड भाई , गज़ल बहुत खूब सूरत कही है , बधाइयाँ !!     उम्र भर थी -  2122  लेना चाहिये था , आपने 1222 ले लिये है , देख लीजियेगा !!

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 17, 2014 at 3:23pm

सुन्दर और सराहनीय प्रयास आदरणीय
सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 17, 2014 at 11:26am

आदरणीय भाई गहमरी जी , सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई ,

Comment by भुवन निस्तेज on April 17, 2014 at 11:23am

अब मजारो की तरफ यूँ न देखो तुम

आ सकेगें हम न आँसू बहानें से

क्या बात है आ. Akhand Gahmari पढ़कर बड़ा आनंद आ गया, कृपया बधाई स्वीकार करें... 

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