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कह मुकरियाँ-11से 16 (कल्पना रामानी)

(11)

थक जाऊँ तो पास बुलाए।

नर्म छुअन से तन सहलाए।

मिले सुखद, अहसास सलोना।

क्या सखि साजन?

नहीं, बिछौना!

12)

रातों की वो नींद उड़ाए।

अपनी धुन में गीत सुनाए।

बात न माने, बैरी बर्बर।

क्या सखि साजन?

ना सखि, मच्छर!

13)

उसका नाम सदा मैं टेरूँ।

नित्य उसी की माला फेरूँ।

रूठ न जाए, मुझसे दैया!

क्या सखि साजन?

नहीं, रुपैया!

14)

सो जाती जब पलकें मींचे।

चुपके से बाहों में भींचे।

सपने देख गुजरती रतिया।

क्या सखि साजन?

ना सखि तकिया!

15)

रातें मेरे साथ बिताए।

परीलोक की सैर कराए।

दिन में मुँह न दिखाए अपना।

क्या सखि साजन?

ना सखि सपना!

16)

चिपका-चिपका साथ घूमता।

बाल सूँघता, गाल चूमता।

लट उलझाए वो मतवाला।

क्या सखि साजन?

ना सखि बाला!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by कल्पना रामानी on February 19, 2014 at 11:13pm

अन्नपूर्णा जी, सादर धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on February 19, 2014 at 11:12pm

सरिता जी हार्दिक आभार/सादर

Comment by कल्पना रामानी on February 19, 2014 at 11:12pm

आदरणीय लड़ीवाला जी, सादर धन्यवाद

Comment by annapurna bajpai on February 19, 2014 at 6:52pm

दीदी सुंदर कह मुकरिया , बहुत बधाई आपको । 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 19, 2014 at 6:29pm

बहुत सुन्दर कह्मुकरियाँ रची है ! हार्दिक बधाई स्वीकारे 

Comment by Sarita Bhatia on February 19, 2014 at 5:38pm

वाह दी बहुत बढ़िया प्रयास हो रहा है कह मुकरियां पर 

कृपया ध्यान दे...

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