For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- सारथी || जुल्फ़ के पेंचों में ||

जुल्फ़ के पेंचों में कमसिन शोख़ियों में

मुब्तला हूँ  हुस्न की रानाइयों  में/१ 

आसमां के चाँद की अब क्या जरूरत

चाँद रहता है नजर की खिड़कियों में/२ 

दिल पे भरी पड़ती है दोनों ही सूरत

हो कहीं वो दूर या नजदीकियों में/३ 

सोचता हूँ अब उसे माँ से मिला दूँ

छुप के बैठी है जो कब से चिठ्ठियों में/४ 

वो अदाएं दिलवराना क़ातिलाना

अब कहाँ वो रंग यारों तितलियों में/५ 

है सुकूं कितना,बताउं कैसे तुमको

यार इज्जत की, कमाई रोटियों में/६ 

चार मिसरों से कहो कांधे पे अपने

ले चलें हमको सुखन की वादियों में/७ 

..................................................

अरकान : २१२२ २१२२ २१२२ 

सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 866

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Saarthi Baidyanath on January 7, 2014 at 8:31pm

सम्माननीय  योगराज प्रभाकर जी ..प्रथमतया सादर प्रणाम ...जेह-किस्मत , जो आप गरीबखाने तक आये ! आपकी गरिमामयी उपस्थिति का अभिवादन व अभिनन्दन करता हूँ ! आपको ग़ज़ल पसंद आई ..नाचीज की मेहनत सफल हो गई ! आशीर्वाद बनाये रखियेगा मान्यवर ...आप सब से ही सीख रहा हूँ ...सिखलाते रहिएगा ...! विनीत नमन पुनश्च  :)

Comment by Saarthi Baidyanath on January 7, 2014 at 8:27pm

आदरणीय  शिज्जु शकूर साहिब ...नजरे-इनायत है आपकी ! बहुत बहुत शुक्रिया इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए ! सादर नमन कर रहा हूँ ! :)

Comment by vijay nikore on January 7, 2014 at 7:05pm

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Priyanka singh on January 7, 2014 at 4:57pm

वाह वाह लाजवाब, खूबसूरत ग़ज़ल ...बहुत उम्दा .....बधाई आपको

Comment by बृजेश नीरज on January 7, 2014 at 1:13pm

बहुत ही सुन्दर! लाजवाब! आपको हार्दिक बधाई!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 7, 2014 at 11:42am

नौजवानी से बुढ़ापे तक का रिश्ता
क्या सलीका था, पुराने दर्जियों में/

वाह वाह भाई सारथी जी, यह शेअर बिलकुल अलग से ही चमक रहा है. ग़ज़ल बढ़िया हुई है, बधाई स्वीकारें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 7, 2014 at 8:45am

वाह भाई वैद्यनाथ जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है हर शेर को खूबसूरती से आपने पेश किया है बधाई आपको

Comment by Saarthi Baidyanath on January 6, 2014 at 10:31pm

आदरणीय अरुन साहब ...हार्दिक आभार ज्ञापित कर रहा हूँ ..! सादर नमन आपको ..जो कुछ सीख रहा हूँ ..इस मंच का बहुत बड़ा योगदान है ..आप सभी गुणीजनों का आशीष भी है ..! विनीत नमन सहित :)

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 6, 2014 at 11:51am

सारथी भाई वाह दिल ख़ुश कर दिया आपने इस बेहतरीन ग़ज़ल को पेशकर सभी अशआर एक से बढ़कर एक बने हुए हैं भाई. जबरदस्त ग़ज़ल के लिए ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by Saarthi Baidyanath on January 5, 2014 at 11:07pm

 annapurna bajpai : महाशया , बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने अनुज को स्नेहाशीष दिया ..आभारी रहूँगा ! कोटिशः नमन सहित :)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
10 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service