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इक सिर्फ तुझको देखूँ डगर में - शिज्जु

22- 1212- 1122

हर रात ख़्वाब के मैं सफ़र में

इक सिर्फ तुझको देखूँ डगर में

 

कुछ आज मखमली सी लगी धूप

क्या बात है न जाने सहर में

 

अंगारों पे चला मैं सहम के

इक हौसला भी था मेरे डर में

 

यूँ हैरतों से देखे मुझे लोग

है मेरा नाम आज खबर मे

 

हर शै पे हर मुकाम पे तू थी

तन्हा हुआ न तेरे नगर में

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 3:53pm

आदरणीय गिरिराज सर रचना पर पुनः आने के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 3:52pm

आदरणीया प्रियंका जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 3:51pm

आदरणीया महिमा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 3:51pm

भाई रामशिरोमणि जी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 3:50pm

आदरणीय तपन जी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 3:48pm

आदरणीय डॉ आशुतोष सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया,

///आपके हौसले के साथ चले हैं उसमे थोडा डर हो सकता है आप सहम के अंगारों पे चलते तो डर में हौसला लगता///
मै सहम के चला क्यूँकि मैं डरा हुआ था मुझे डर दहकते अंगारो का था, लेकिन चलने का हौसला अंगारों से ही मिल रहा था कि उसमें ताकत है जलाने की तो मुझमे ताकत है मुकाबला करने की, इस तरह जो मेरा डर था उससे ही मुझे हौसला मिला


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 3:29pm

आदरणीया कुन्तीजी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 3:28pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 3:28pm

आदरणीय सुशील सर आपका शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 3:27pm

आदरणीय डॉ गोपाल सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

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