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प्रिये तुम तो प्राण समान हो

अंतस मन में विद्यमान हो,
तुम भविष्य हो वर्तमान हो,
मधुरिम प्रातः संध्या बेला,
प्रिये तुम तो प्राण समान हो....

अधर खिली मुस्कान तुम्हीं हो,
खुशियों का खलिहान तुम्हीं हो,
तुम ही ऋतु हो, तुम्हीं पर्व हो,
सरस सहज आसान तुम्हीं हो.

तुम्हीं समस्या का निदान हो,
प्रिये तुम तो प्राण समान हो....

पीड़ाहारी प्रेम बाम हो,
तुम्हीं चैन हो तुम्हीं अराम हो,
शब्दकोष तुम तुम्हीं व्याकरण,
तुम संज्ञा हो सर्वनाम हो.

तुम पूजा हो तुम्हीं ध्यान हो,
प्रिये तुम तो प्राण समान हो....

.

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 5:08pm

हार्दिक आभार आदरणीय रतन जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 5:08pm

हार्दिक आभार आदरणीया सविता जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 5:07pm

आदरणीय शिज्जू भाई जी हार्दिक आभार आपका स्नेह यूँ ही बना रहे


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 9, 2013 at 4:48pm

आदरणीय अरुण अननत भाई , !!!!!! प्राण प्रिये के की तारीफ करती आपकी सुन्दर रचना के लिये आपको ढेरों बधाई !!!!!!

Comment by Ratan BK on November 9, 2013 at 4:36pm
बहुत खुब सुरत
सर
Comment by Meena Pathak on November 9, 2013 at 4:32pm

बहुत सुन्दर रचना .... बधाई आप को | सादर 

Comment by savitamishra on November 9, 2013 at 4:25pm

बहुत सुन्दर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 9, 2013 at 4:17pm

आदरणीय अरुण जी आपने तो पूरी तरह डूब कर ये कविता लिखी है, बेहतरीन रवां और दवां,आपको तहे दिल से मुबारक़बाद देता हूँ

कृपया ध्यान दे...

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