For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत (रिश्ते नाते हारे)

गीत (रिश्ते नाते हारे)

गया सवेरा, ख़त्म दोपहर, ढली सुनहरी शाम,   

आँखें ताक रहीं शून्य, और मुँह में लगा विराम,

गीत, गज़ल ख़ामोश खड़े औ कविता हुई उदास,

जब सबने छोड़ा साथ,

आँसू की हुई बरसात।

 

मैंने भी अब मान लिया है जग की रीत पुरानी जी,

झूठ फले – फूले जीवन में, सच की हो कुर्बानी जी,

एक जिगर का टुकड़ा बनता फिर गर्दन की फाँस,

जब सबने छोड़ा साथ,

आँसू की हुई बरसात।

 

जीवन के इस बीच भँवर में ना डूबें, ना उतरें हम,

फूल नहीं थे, उनके दिल पर काँटे बन कर उभरे हम,

काँटे रक्षा करें फूल की, क्यों न उन्हें आभास,

जब सबने छोड़ा साथ,

आँसू की हुई बरसात।

 

शीत गई चंदा की अब तो, जल में अब अंगारे हैं,

चलन हुआ रुपयों का ऐसा, रिश्ते – नाते हारे हैं,

संग जानकी, राम भटकते, हुआ वही बनवास,

जब सबने छोड़ा साथ,

आँसू की हुई बरसात।

----------------------------------------- सुशील जोशी

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 999

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil.Joshi on October 28, 2013 at 5:01am

आपकी स्नेहिल टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्वाद आपका आ0 विशाल भाई....

Comment by Sushil.Joshi on October 28, 2013 at 4:59am

उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार आ0 गिरिराज जी....

Comment by Sushil.Joshi on October 28, 2013 at 4:58am

अनुमोदन के लिए बहुत बहुत आभार आपका आ0 लक्ष्मण प्रसाद जी......

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 27, 2013 at 9:55pm

आज रिश्तों में बढ़ रहे छल कपट, खत्म होती आत्मीयता.... खोखलापन....नकलीपन से उपजी निराशा पर आधारित एक बहुत ही सार्थक एवं सराहनीय गीत के लिये हृदय से बधाई स्वीकारें भाई !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 27, 2013 at 7:06pm

आदरणीय सुशील भाई , लाजवाब गीत  रचना के लिये आपको बहुत बधाई !!!!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 27, 2013 at 6:58pm

जीवन के इस बीच भँवर में ना डूबें, ना उतरें हम,

फूल नहीं थे, उनके दिल पर काँटे बन कर उभरे हम |

शीत गई चंदा की अब तो, जल में अब अंगारे हैं,

चलन हुआ रुपयों का ऐसा, रिश्ते – नाते हारे हैं |------बहुत खूब | बधाई श्री शुशील जोशी जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
22 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service