For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (३) : मुझे लड़की बनाना !

मेरे अल्लाह ! तू लड़की बनाना

मुझे आता नहीं, चोटी बनाना//१

.

बनाना चाहता हूँ ‘आदमी’ को

बुरा है पर, ज़बरदस्ती बनाना//२

.

मुझे इक 'माँ' लगे है, देख लूं जो        

सनी मिट्टी लिए रोटी बनाना//३

.

न डूबेगा समंदर में, लहू के  

शिकारी सीख ले कश्ती बनाना//४

.

चला वो, तीर-भाले को पजाने

सिखाया था जिसे बस्ती बनाना//५

.

उजालों से मुहब्बत है, मुझे भी

सिखा दे माँ मुझे तख्ती बनाना//६

.

जवां बेटी, न पैसे, और शादी

कहाँ मुम्किन तुझे छोटी बनाना//७

न बेटे में, न बेटी में कमी है

कभी सिखला उसे हस्ती बनाना//८

.

ख़ुदा को फ़िक्र तो ग़म 'नाथ' को भी 

पड़ेगा फिर 'उसे' धरती बनाना//९

.

"मौलिक व अप्रकाशित"

वज्न : मिरे-12/अल्लाह-221/तू-2/लड़की-22/बनाना-122 [1222-1222-122]

Views: 1301

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 14, 2013 at 4:26pm

विनम्रता ददाति विनयम ......आपकी बातो से स्पष्ट है की आप सिर्फ वाह वाही  नहीं चाहते अपनी रचनाओं में सुधार,और ज्ञानोपार्जन हेतु इस मंच से जुड़े हैं; तो ये मंच आपको बहुत कुछ देगा ,पहली बार आपकी ग़ज़ल पढ़ी ,विद्वद  जनों की प्रतिक्रिया भी पढ़ी जो आपने सहज  स्वीकार की ,एक अच्छे ,गंभीर रचनाकार का सबसे पहला गुण यही होता है की जहाँ हम शाबाशियाँ स्वीकारते हैं हमे उसी तरह उस समीक्षा को भी  स्वीकारना चाहिए जिसमे हमारे शुभ चिन्तक  हमारी कमियाँ बताते हैं  आपने काफिया सही करके ग़ज़ल को दोष मुक्त कर दिया बहुत अच्छा लगा ,बस एक बात का ध्यान और रखिये की आपका मिसरा अपने भाव भी पूर्णरूपेंण स्पष्ट करे ----

जैसे इस शेर में ----

जवां बेटी, न पैसे, और शादी

कहाँ मुम्किन तुझे छोटी बनाना//७

. कुछ भाव सपष्ट नहीं हैं ,अर्थात जो भाव आप लाना चाह रहे हैं वो नहीं आ पाए ,बाकी बहर पर आपकी ग़ज़ल कासी हुई है 

फिलहाल बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 14, 2013 at 3:20pm

बहुत बहुत आभार डॉ आशुतोष मिश्रा साहब....हार्दिक नमन !!!!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 10:21am

इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ..सादर 

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 13, 2013 at 4:48pm

जी...शकील साहब...सत्य तो यह है की सही वक्तव्य हो तो वाह-वाही कहीं मिल जाती है..लेकिन नी:संकोच सिखाने वालों, कमियाँ बताने वालों की मैंने हर जगह कमी देखी है..इसीलिए यह मंच मुझे बहुत प्रिय है.और एक आदर है इस मंच का इस मंच से जुड़े सभी सदस्यों के प्रति,,,..और उम्मीद है..यह मंच भी मुझे कुछ अंतराल बाद अपना लेगी .....चरैवति चरैवति ....नमन आपको...// आदरणीय अरुण शर्मा अनंत साहब...मैंने पाठशाला की सामग्रियों को पढ़ा है..लेकिन कभी कभी कुछ बातें स्पष्ट नहीं हो पाती है...तब आप सबों की अनुकम्पा का ही सहारा रहता है.....नमन आपको !!!! . 

Comment by शकील समर on October 13, 2013 at 4:37pm

आदरणीय रामनाथ शोधार्थी जी, सीखना—सिखाने का क्रम आगे बढ़ता रहना चाहिए, इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है।

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 13, 2013 at 4:35pm

नमन आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब, आपका कथन अक्षरश: वाज़िब है...लग रहा अब ग़ज़ल सही हो जाएगी...आप सभी महानुभावों के इस्लाह के लिए कोटिश: नमन... !

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 13, 2013 at 4:32pm

बहुत बहुत आभारी हूँ...आभार आपका शकील जमशेद्पुरी साहब...आपकी सहृदयता के लिए, इस विनम्र विवेचना हेतु...नमन...आपको...!!!!!!! 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 13, 2013 at 4:32pm

आदरणीय रामनाथ जी मतले में काफिया बेटी की जगह एडमिन महोदय जी से निवेदन कर लड़की करवा लें ग़ज़ल दोषमुक्त हो जाएगी. जैसा कि आदरणीय भ्राताश्री जी ने कहा भी, आपसे इतना ही कहूँगा कि एक बार पाठशाला में जाकर ग़ज़ल की बातें का अध्ययन अवश्य करें काफी कुछ स्पष्ट हो जायेगा. आपका प्रयास बहुत उम्दा है इस हेतु बधाई स्वीकारें. 

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 13, 2013 at 4:31pm

आदरणीय बाग़ी साहब, दोषयुक्त ग़ज़ल कोई थोड़े पोस्ट करना चाहता है, हाँ..मुझे भी टी और ती को लेकर संशय था...जिसका निराकरण..के चक्रव्यूह में फंसा हुआ था...और देखिये आप सबों की दयालुता से..बातें आसान होती ज़ा रही है...इसे अन्यथा न लें...ऐसी गुजारिश है...नमन सहित....!!! 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2013 at 4:23pm

//अगर ....मेरे अल्लाह तू लड़की बनाना //मुझे आता नहीं चोटी बनाना //

हां,काफिया ई की मात्रा पर तय हो जायेगा और ग़ज़ल काफिया रदीफ़ स्तर पर दोष मुक्त हो जाएगी । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
4 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
6 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
8 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service