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शरीर पर बेदाग पोशाक, स्वच्छ जेकेट, सौम्य पगड़ी एवं चेहरे पर विवशता, झुंझलाहट, उदासी और आक्रोश के मिले जुले भाव लिए वे गाड़ी से उतरे... ससम्मान पुकारती अनेक आवाजों को अनसुना कर वे तेजी से समाधि स्थल की ओर बढ़ गए... फिर शायद कुछ सोच अचानक रुके, मुड़े और चेहरे पर स्थापित विभिन्न भावों की सत्ता के ऊपर मुस्कुराहट का आवरण डालने का लगभग सफल प्रयास करते हुये धीमे से बोले- “मैं जानता हूँ, जो आप पूछना चाहते हैं... देखिये, आप सबको, देश को यह समझना चाहिए... और समझना होगा कि ‘गांधी’ जी के पदचिह्नों पर, उनके दिखाये, बताए, सुझाए रास्तों पर चलना ही हमारी प्रथम प्राथमिकता एवं प्रतिबद्धता है...” कहकर वे मुड़े और तेजी से चलते हुये भीतर प्रवेश कर गए... शीघ्र ही वातावरण में ‘गांधीजी’ के प्रिय भजन की स्वरलहरियां तैरने लगीं.... “वैष्णव जन तो.... “ 

_________मौलिक/अप्रकाशित__________

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Comment by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 9:40pm

एक बेहद सुंदर कटाक्ष किया है आपने आदरणीय संजय भाई.... बधाई स्वीकारे...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2013 at 9:28pm

आदरणीय संजय भाई , बहुत सुन्दर सामयिक और तीखा व्यंग !!!! वाह भाई !! बधाई !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 2, 2013 at 8:30pm

बहुत सही कटाक्ष किया है हबीब जी 'गाँधी जी'  का ही तो अनुसरण कर रहे हैं आज तक मौन रहकर ,आँखें बंद कर कान बंद कर ,वही जनता को करने के लिए कहते हैं पर जनता ठहरी मूढ़ मति 

Comment by रविकर on October 2, 2013 at 6:04pm

गाँधी रंग जमात नव, बड़बड़ाय चल जात |
पद चिन्हों पर फिर चले, सत्ता सकल जमात ||

शुभकामनायें आदरणीय-


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 4:27pm

//और समझना होगा कि ‘गांधी’ जी के पदचिह्नों पर, उनके दिखाये, बताए, सुझाए रास्तों पर चलना ही हमारी प्रथम प्राथमिकता एवं प्रतिबद्धता है...”//

वाह भाई जी वाह, बहुत ही बरीकी से प्रहार किया है, केवल गान्धी के बताये अनुसार चलना ही नही बल्कि खमोश भी रहना होगा,

एक सुझाव : ‘गांधीजी’ की जगह 'बापू' कर देने से बात और खूल कर आयेगी । 

बधाई इस प्रस्तुति पर ।

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