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समन्दर की लहरों सी है जिन्दगानी

1  2 2 1   2 2 1 2   2 1 2 2

समन्दर की लहरों सी है जिन्दगानी
कभी बर्फ गोला कभी बहता पानी

उदासी के बूटे जड़े हैं सभी में
हो तेरी कहानी या मेरी कहानी

बुढ़ापे में होने लगी ताज़पोशी
किसी काम की अब नहीं है जवानी

ये मौजें भी अब मुतमइन सी हैं लगती
नहीं है वो जज्बा नहीं वो रवानी

नये ये नज़ारे बहुत दिलनशीं हैं
मगर मुझको भाती हैं चीज़ें पुरानी

अमित दुबे अंश  मौलिक व अप्रकाशित

Views: 731

Comment

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Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 7:19pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल अमित कुमार जी //////

Comment by Meena Pathak on September 30, 2013 at 6:28pm

सुन्दर गज़ल .. बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 30, 2013 at 4:23pm
आदरणीय अमित भाई , सुन्दर गज़ल हुई है भाई , आपको बहुत बधाई !!
Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 30, 2013 at 3:36pm

शुभ कामनाये ! अक्सर पुरानी चीज़े ही साथ देती है !

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