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दिल लगाने की हिमाक़त हो रही

२ १ २ २    २ १ २ २     २ १ २

रुक्न --फ़ाइलातुन ,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन

बह्र --रमल मुसद्दस महजूफ

 

 

पत्थरों से ज्यों मुहब्बत हो रही

गुगुनाने को तबीयत हो रही

 

रोज करते थे  परेशाँ फूल को

आज भँवरों से अदावत हो रही

 

क्यों लुभाते हैं नज़ारे ये मुझे

दिल लगाने की हिमाक़त हो रही

 

घात में बैठे हैं लेकर कैंचियाँ

तितलियों को ये शिकायत हो रही

 

मैं डुबा दूँ नफरतों की कश्तियाँ

होंसलों की बस जरूरत हो रही

 

सब पले  इक ही नदी के दूध से 

भाइयों में क्यों बगावत हो रही

 

यूँ गिराया है मेरा शीशा- ए- दिल

बस बिखरने की गनीमत हो रही

 

उड़ चुकी हैं हसरतों की धज्जियाँ

प्यार की सच्ची कहावत हो रही

 

रहमतों के बोझ से जो झुक गए

बदगुमा उनकी शराफ़त हो रही

 

'राज' रुपये  की कहाँ कीमत बची 

देश भर में ये नसीहत हो रही

******************************

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 17, 2013 at 9:20am

आदरणीय जितेन्द्र गीत जी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया पढ़ कर हर्षित हूँ दिल से आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 17, 2013 at 9:19am

आदरणीय वीनस जी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया पढ़ कर कितना उत्साह वर्धन हुआ मैं शब्दों में बयाँ नहीं कर सकती,मेरी ग़ज़ल धन्य हुई ओ बी ओ पर आप जैसे विद्वद जनों के  मार्ग दर्शन में ही  हम लोग धीरे धीरे आगे बढ़ रहे हैं तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 17, 2013 at 12:19am

मैं डुबा दूँ नफरतों की कश्तियाँ

होंसलों की बस जरूरत हो रही.........यह शेर बहुत पसंद आया

बेहतरीन गजल प्रस्तुति, बहुत बहुत बधाई आदरणीया राजेश जी

 

Comment by वीनस केसरी on September 16, 2013 at 11:59pm

वाह वा आदरणीया ग़ज़लगोई का आपका हुनर काबिले तारीफ़ है
हर शेर ग़ज़ल में होने का हक अदा कर रहा है ....

आपकी ग़ज़लों का इंतज़ार रहता है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 16, 2013 at 11:38pm

आदरणीया सावित्री जी ग़ज़ल आपकी सराहना पाकर धन्य हुई दिल से आभारी हूँ 

Comment by Savitri Rathore on September 16, 2013 at 11:19pm

राजेश जी अत्यंत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है,प्रत्येक शेर एक  से बढ़कर एक है .....बधाई हो।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 16, 2013 at 8:43pm

नीरज कुमार जी ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ |

Comment by Neeraj Neer on September 16, 2013 at 8:32pm

वाह बहुत खूब .. बेहतरीन ग़ज़ल कही है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 16, 2013 at 8:15pm

आदरणीया अन्नापूर्णा जी आप को ग़ज़ल पसंद आई बहुत ख़ुशी हुई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ|

Comment by annapurna bajpai on September 16, 2013 at 7:19pm

मैं डुबा दूँ नफरतों की कश्तियाँ

होंसलों की बस जरूरत हो रही.................... सही है बस हौसलों की ही जरूरत है ताकि ये नफ़रतों की कश्तीयां डुबाई जा सकें , बढ़िया । आपको बहुत बधाई ।

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