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काल के चूल्हे पर

काठ की हांडी

चढ़ाते हो बार बार .

हर बार नयी हांडी

पहचानते नहीं काल चिन्ह को

सीखते नहीं अतीत से .

दिवस के अवसान पर

खो जाते हो

तमस के आवरण के भीतर

रास रंग और श्रृंगार में .

आँखों पर चढ़ा लिया

झूठ और ढकोसले का चश्मा.

अपनी कायरता को प्रगतिशीलता का नाम दे दिया.

तुम्हे साफ़ दिखाई नहीं देता.

तुम सच देखना भी नहीं चाहते .

क्षणिक स्वार्थों ने तुम्हे अँधा कर दिया.

पर याद रखना

निरपेक्षता , निष्क्रियता से बड़ा अपराध है .

हिजड़ों का भी एक अपना पक्ष होता है ..

…………. नीरज ‘नीर’

पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित ..

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on September 1, 2013 at 9:14am

आभार केवल प्रसाद जी ..

Comment by वीनस केसरी on September 1, 2013 at 2:11am

जय हो जय हो
दिल खुश हो गया

जिंदाबाद भाई
छा गये ....

Comment by vijayashree on September 1, 2013 at 12:07am

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति 

बधाई स्वीकारें नीरज कुमार नीर जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 31, 2013 at 9:50pm

आ0 नीरज नीर भाई जी, लाजवाब प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by Neeraj Neer on August 31, 2013 at 8:11pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी  बहुत आभार .. 

Comment by Neeraj Neer on August 31, 2013 at 8:10pm

आदरणीय जीतेन्द्र गीत जी आपको कविता पसंद आयी हार्दिक आभार ..

Comment by Neeraj Neer on August 31, 2013 at 8:09pm

आदरणीय शुभ्रा शर्मा जी हार्दिक आभार ..

Comment by shubhra sharma on August 31, 2013 at 7:18pm

आँखों पर चढ़ा लिया
झूठ और ढकोसले का चश्मा.
अपनी कायरता को प्रगतिशीलता का नाम दे दिया.
तुम्हे साफ़ दिखाई नहीं देता.
तुम सच देखना भी नहीं चाहते .
क्षणिक स्वार्थों ने तुम्हे अँधा कर दिया.
पर याद रखना
निरपेक्षता , निष्क्रियता से बड़ा अपराध है .
हिजड़ों का भी एक अपना पक्ष होता है ..
...................................................बहुत सुदर पंक्तिया, बधाई स्वीकार करे आदरणीय नीरज जी

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 5:06pm

बहुत बढ़िया पंक्तियाँ , बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीरज जी

Comment by Shyam Narain Verma on August 31, 2013 at 12:58pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

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