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तान्या : दो प्रेम कविताएँ

एक

चाँद झाँका

बादलों की ओट से ,

चाँदनी चुपके से आ

खिड़की के रस्ते,

बिछ गई बिस्तर पे मेरे/ 

और 

हवा  का एक झोंका,

सोंधी सी खुश्बू लिए

छू कर गया गालों को मेरे /

यूँ लगा मुझको कि

तुम सोई हो मेरे पास ,

मेरी बाहों के घेरे में /

लेकर होठों पर

एक इंद्रधनुषी मुस्कुराहट

तृप्त |

दो

सपने, तान्या

एक दम छोटे से बच्चे 

जैसे होते हैं/

अपने मे खोए से / 

जाने क्या सोचते रहते हैं/

फिर हौले से मुस्कुरा देते हैं/

फिर कुछ गुनगुनाने लगते हैं/

फिर गाने लगते हैं/

फिर नाचने लगते हैं/

फिर चकित हो जाते हैं/

फिर खामोश हो जाते हैं/

फिर उदास हो जाते हैं/

फिर सुबकने लगते हैं/

फिर दर्द की भाप मे बदल जाते हैं/

ओर दिल से उठ कर 

आँखों की कोरों पर आ के 

बैठ जाते हैं/

ओर खोई खोई आँखों से 

अपनी तान्या को खोजने लगते हैं/

फिर उन्ही गालों पर

बहने लगते हैं

जिन्हे तुम ने  चूमा था/

भीगे भीगे इस मौसम मे/

ऐसा ही एक सपना 

मेरे दिल से उठ कर /

मेरी आँखों की कोरों पर 

आ बैठा है/

ओर  खोज रहा है  तुम्हे |

 

 मौलिक एवं अप्रकाशित

                               अरविंद भटनागर ' शेखर'

 

 

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Comment

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Comment by राज़ नवादवी on August 29, 2013 at 8:30am

पढ़कर ताज़गी का एहसास हुआ. दूसरी कविता में शब्दों के साथ चित्रों का उद्दाम प्रवाह आनंद से भर गया. बधाई भटनागर जी!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 28, 2013 at 9:44pm

बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति, हार्दिक बधाई आदरणीय अरविन्द जी

Comment by Abhinav Arun on August 28, 2013 at 9:26pm
आ. अरविन्द जी छा गए भावों की ये गहराई दिल में उतरती चली जाती है ..अरसे बाद इतनी मधुर भाव लिए अभिव्यक्ति पढ़ी ..प्रशंसा के शब्द नहीं ..सुन्दर सहज प्रवाह माय प्रेम पगी कविता के लिए कोटि कोटि बधाई !!
Comment by ARVIND BHATNAGAR on August 28, 2013 at 9:14pm

आदरणीय , 

         इतने सशक्त कवि के मुख से अपने लिए इतना कुछ सुन के बहुत अच्छा अच्छा सा लग रहा हैआप के सुझाव एवं मार्गदर्शन का 

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