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वक्त जो हम पर भारी है - वीनस

छोटी बहर पर ग़ज़ल का एक प्रयास  .....

वक्त जो हम पर भारी है 
अपनी भी तय्यारी है 

पूरा कारोबारी है 
ये अमला सरकारी है 

.

प्रजातंत्र के ढांचे में 

हर कोई दरबारी है 

तय्यारी है हमलों की 

अम्न का नाटक ज़ारी है 

सच को कैसे सच कह दें  
जान हमें भी प्यारी है 


खुद को खतरा है खुद से 

ये कैसी खुद्दारी है 

साम्यवाद के नारों पर 

भारी जिम्मेदारी है 



वीनस केसरी 
मौलिक व अप्रकाशित 

फैलुन फैलुन फैलुन फ़ा 

Views: 842

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Comment by वीनस केसरी on June 22, 2013 at 12:05am
मीना पाठक जी हार्दिक आभार
Comment by वीनस केसरी on June 22, 2013 at 12:04am

जितेन्द्र जी इस हौसला अफजाई के लिए शुक्रगुज़ार हूँ

Comment by वीनस केसरी on June 21, 2013 at 11:44pm

कल्पना रामानी जी आपका ह्रदय तल से आभारी  हूँ ...

टंकण त्रुटि कि ओर ध्यान दिलाने लिए लिए पुनः आभार
सार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 21, 2013 at 7:42pm

इस छोटी बह्र की ग़ज़ल का अंदाज़ बहुत बड़ा है. हर शेर पर दाद है.

Comment by बृजेश नीरज on June 21, 2013 at 3:56pm

अहहा! किस सुंदरता से बधिया उधेड़ी है आपने वर्तमान परिस्थितियों की। बहुत सुन्दर! मेरी बधाई स्वीकारें!

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 21, 2013 at 12:48pm

Waah Venus bhai bahut khoob.....bahut umda ghazal hui hai. daad kubool karein !

Comment by avnish uniyal on June 21, 2013 at 12:48pm

aadaniya guruji..pranam

               jandar gazal ke liye badhai sweekaren...ek vidhyarthi ke roop main nivedan hai ki is gazal ki takteea karne ka kasht karenge..jisse mujh jaise anaadi vidhyarthi ko iski bahar samajhne main aasaani ho...

                                                                                                                                                sadar

Comment by aman kumar on June 21, 2013 at 11:04am

प्रजातंत्र के ढांचे में 

हर कोई दरबारी है 

आपकी रचनाये जलती हुई आग जैसी होती है ! 

जो दिल पर असर करती है !

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 21, 2013 at 9:08am

आ0 वीनस भाई जी, वाह! क्या कहने...!
‘खुद को खतरा है खुद से
ये कैसी खुद्दारी है
साम्यवाद के नारों पर
भारी जिम्मेदारी है ‘...बहुत ही उम्मदा। ढेरों दाद कुबूल करें। सादर,

Comment by D P Mathur on June 21, 2013 at 7:46am

खुद को खतरा है खुद से,
इस पंक्ति से हमारी सच्चाई हमें ज्ञात हो रही है
साथ ही इंसान कितना कमजोर हैं
समझ में आ रहा है !
बहुत खूब !!!

कृपया ध्यान दे...

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