For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अब नहीं आयेगी बेटी

बेटियों पे कब तलक बस यूँ ही लिखते जाओगे, 
कब हकीकत की जमीं पर आ के उन्हें बचाओगे... 


क्यों नहीं उठते हाथ और क्यों न करते सर कलम,
और कितनी दामिनीयों के लिए मोमबतियां जलाओगे... 

आज कहते हो की प्यारी होती है सब बेटियां, 
खुद मगर कब बेटों की चाह से निजात पाओगे... 

जानवर से इंसान बना और फिर भी रहा जानवर, 
जिस्म मानव का है पर कब इंसानी रूह लाओगे... 

छु रही है आसमां आज की सब लड़कियां, 
इस जमीं को कब उसके चलने लायक बनाओगे... 

देखो क्या उसूल है मुजरिम की भी होती पैरवी ,
ऐसे माहौल में तो बस मुजरिम बढ़ाते जाओगे...

निकली थी बेख़ौफ़ सी घर से वोह जीने जिंदगी,
लुट गयी अब कैसे उसे जीने की राह दिखाओगे... 

अपनी बेटी बेटी है, औरों  की बेटी माल है, 
कब तलक ये दोहरा चेहरा अपनों से छुपाओगे... 

अब न आयेगी कभी इस जमीं पर बेटियां, 
अपनेपन ममता को एक दिन तरस जाओगे...

मौलिक एंव अप्रकाशित 

Views: 1134

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:43pm

दिव्या जी 

लड़कियों पे जितने अत्याचार कम करने की बात चलती है अत्याचार ओर भी बढते जा रहे है .. न जाने कब ये आग बुझेगी ओर मासूम कब चैन से जियेगी 

आपके विचारों एक लिए आभार 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:42pm

एक बार फिर से धन्यवाद जितेंदर जी ... आभार 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2013 at 12:36pm
"सादर आभार " आदरणीया रोशनी जी, आपने सच कहा ' यही बिडम्वना ही है..लोग अपनी बेटियों के लिए हर तरह के सुख, सुविधा का ख्याल रखते है, परन्तु जो दूसरों की बेटी है ,वो भी तो वैसे ही है जैसे आपकी बेटी है।...सीधी बात " हम अनमोल, दूसरा बिनमोल का...।"शक्रिया आदरणीया ..हार्दिक शुभकामनाऐं
Comment by दिव्या on June 7, 2013 at 12:35pm

रौशनी जी, 
लड़कियों पे बढते अत्याचारों पे करारी चोट करती रचना 
जाने जन  चेतना कब आएगी 
अच्छी रचना के लिए साधुवाद 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:25pm

धन्यवाद श्याम नारायण जी 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:24pm

आ० जवाहर जी 

चाहे लड़कियां कितने भी आसमान छु ले मगर बेटे की चाह की जो हमारे समझ की सोच है वोह नहीं बदल सकती ... फर्क कल भी था ओर आज भी है .. ओर आज जिस तरह की घिनोनी हरकत लड़कियों के साथ हो रही है .. ऐसे में कौन बेचारी को ऐसी डर भरी जिंदगी देना चाहेगा ... समस्या बढती जा रही है .. इतनी तरक्की होने के बावजूद भी ..

आपके अमूल्य विचारों के लिए आभार 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:20pm

आ० आबिद जी नमस्कार 

मानसिकता बदले बिना कुछ अच्छा होना मुश्किल है .... रचना पर सहमति के लिए आभार 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:19pm

आ ० गीतिका जी 

तारीफ के लिए तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:19pm

आ ० कुंती जी नमस्कार 

आज हम सब बस मोमबती लेकर विरोध कर रहे है .. मगर क्या इस विरोध को कोई परिणाम निकला है कभी ... मोमबती जलना आसान है मगर अपनी मानसिकता को बदलना शायद मुश्किल ... काश की अब भी सब जागे ओर बेटियों के प्रति होते जुल्म को रोके 

आपके विचार के लिए आभार 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:17pm

आ०  जितेंदर जी यही तो आज के समाज की विडम्बना  है अपनी हर चीज़ प्यारी है मगर दूसरों के ऊपर ऊँगली उठाते हम एक पल भी  नहीं सोचते .. अपनी इज्जत प्यारी ओर की मजाक ..रचना की सराहना के लिए आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service