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शक्ति है मात्र नारी (महाभुजंगप्रयात सवैया)

विधान : महभुजंगप्रयात सवैया - यगण (।ऽऽ) X 8

नहीं पुत्रियाँ क्या रहीं पुत्र जैसी उठा चिन्तनों में यही प्रश्न भारी
यही सोचते रात्रि बीती हमारी समाधान पाया नहीं बुद्धि हारी
पढ़ा सत्य है पुत्रियाँ हैं नहीं पुत्र जैसी कभी भी न होतीं विकारी
न मारो इन्हें गर्भ में पुत्र से श्रेष्ठ हैं मान लो शक्ति है मात्र नारी
*******************************


डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2013 at 7:22pm

खड़ी हिन्दी में विचारपरक कथ्य और संयत रूप से शिल्प का निर्वहन अभिभूत कर गया, आदरणीय. सही ही कहा गया है कि पुत्रियों की अस्मिता से परिवार में संस्कार का संसरण होता है. पता नहीं किस घोर नैराश्य में पैशाचिक मंतव्य हावी हुए कि पुत्रियों के प्रति समाज इतना क्रूर हो गया और होता गया. आपकी प्रस्तुत संदेशपरक रचना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद और शुभकामनाएँ. 

यगण की आठ आवृतियों से बने वृत को महाभुजंगप्रयात या भुजंगप्रयात सवैया की अतिप्रचलित संज्ञा प्राप्त है. आपने उक्त संज्ञा का प्रयोग न कर अन्यथा नामकरण को वरिष्ठता दी है. इसका कोई विशिष्ट प्रयोजन है या इस वृत की अवृतियों में कोई वशिष्ट्य है जो हम जैसे अनजान पाठकों की दृष्टि में ही नहीं आ रहा है.

कृपया जिज्ञासा को संतुष्ट करने की कृपा करेंगे, आदरणीय.

आपने तीसरे पद में कभी भी का प्रयोग किया है. किन्तु, कभी के साथ एक और भी के प्रयोग को सुना है कि उचित नहीं माना जाता. क्या सही है, आदरणीय ? यह भी एक जिज्ञासा है.

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 3, 2013 at 6:54pm

बहुत आभार श्याम नारायण जी 

Comment by Shyam Narain Verma on June 3, 2013 at 5:40pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

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