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मै बांसुरी बन जाऊं प्रियतम

मै बांसुरी बन जाऊं  प्रियतम

और फिर इसे तुम अधर धरो

.............................................

.धुन मधुर बांसुरी की सुन मै

 पाऊं कान्हा को राधिका बन 

..........................................

रोम रोम यह कम्पित हो जाए

तन मन में कुछ ऐसा भर दो

............................................

प्रेम नीर भर आये नयनों में

शांत करे जो ज्वाला अंतर की 

..........................................

फैले कण कण में उजियारा

और हर ले मन का अँधियारा

.........................................

मै बांसुरी बन जाऊं  प्रियतम

और फिर इसे तुम अधर धरो

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Comment

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Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 3, 2013 at 10:12pm
कान्हा के रस डूबी हुई आपकी पंक्तियाँ बङी ही सुन्दर है रेखा जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 3, 2013 at 9:57pm

भक्ति रस में पगी  सुंदर  रचना हेतु बधाई आपको रेखा जी |

Comment by Rekha Joshi on March 3, 2013 at 8:58pm

आ दिनेश जी ,ब्रजेश जी ,लक्ष्मण जी आप सबका हृदय से आभार ,धन्यवाद .

Comment by Rekha Joshi on March 3, 2013 at 8:55pm

आ पवन जी ,पंकज जी ,रविकर जी ,प्रोत्साहन हेतु आप सभी का हार्दिक आभार 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 3, 2013 at 7:05pm

भक्ति भाव की सुन्दर रचना, बधाई आदरणीया रेखा जोशी जी 

Comment by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 6:35pm

बहुत ही सुन्दर। गिरधर गोपाल आशीष बनाए रखें।

Comment by DINESH PAREEK on March 3, 2013 at 4:42pm

वाह ! बेहतरीन

Comment by रविकर on March 3, 2013 at 4:08pm

बढ़िया भक्ति भाव-
आभार आदरेया ||

Comment by Pankaj Trivedi on March 3, 2013 at 3:28pm

प्रेम नीर भर आये नयनों में

शांत करे जो ज्वाला अंतर की

*

वाह ! बेहतरीन

Comment by pawan amba on March 3, 2013 at 2:51pm

achhi hai...

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