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1.
उस बिन दुनिया ही धुंधलाए 
नयना दुख-दुख नीर बहाए,
है सौगात, नायाब करिश्मा,
ऐ सखि  साजन ? न सखी चश्मा l

2.
नज़र नज़र में ही बतियाए,
देख उसे मन खिल खिल जाए,
सुबह शाम उसको ही अर्पण,
ऐ सखि साजन? न सखी दर्पण l


3.
साथ बिताएँ रैन दोपहरी ,
बातें करता मीठी गहरी ,
नटखट भी और बुद्धिजीवी ,
ऐ सखि साजन ? न सखी टीवी l
4
आते ही मुस्कान जगाए,
ख़्वाबों को ताबीर दिलाए ,
खुल्ली शौपिंग,कभी ज्वेलरी ,
ऐ सखि साजन ? न सखी सेलरी l

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 7, 2012 at 9:15am

आदरणीय सौरभ पण्डे जी को नमन | डॉ.प्राची जी के कह मुकरिया में जिस बारीकी से संशोधन के सुझाव दिए है, वह बहुत प्रभावकारी है और सिखाने की उनकी परवर्ती को साधुवाद |-लक्ष्मण लडीवाला

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 7, 2012 at 12:58am

डॉ० प्राची जी,

आप द्वारा रचित उपरोक्त सभी कहकरियाँ अद्वितीय बन पड़ी हैं ! जिनके लिए साधुवाद स्वीकारें !

 

खग कलरव सुर छंद सुनाती,

प्रात खिले विस्मित कर जाती.

भोर उगे भा जाए सांची

क्या प्रभु किरणें ? नहिं प्रभु प्राची !

 

तथापि शिल्प सम्बन्धी गुणवत्ता में अभिवृद्धि के निमित्त कुछ सुझाव उदाहरण स्वरूप दिए जा रहे हैं ...........  

//1.
उस बिन दुनिया ही धुंधलाए 
अखियाँ दुःख-दुःख नीर बहाएं,
है सौगात, नायाब करिश्मा,
ऐ सखी साजन ? न सखी चश्मा l
2.
नज़र नज़र में ही बतियाए,
देख उसे मन खिल खिल जाए,
सुबह शाम उसको ही अर्पण,
ऐ सखी साजन? न सखी दर्पण l
3.
साथ बिताएँ रैन दोपहरी ,
बातें करता मीठी गहरी ,
नटखट भी और बुद्धिजीवी ,
ऐ सखी साजन ? न सखी टीवी l

4
आते ही मुस्कान जगाए,
ख़्वाबों को ताबीर दिलाए ,
खुल्ली शौपिंग,कभी ज्वेलरी ,
ऐ सखी साजन ? न सखी सेलरी l//

____________________________

1.
उस बिन दुनिया ही धुंधलाए 
नयना दुख-दुख नीर बहाए,
है सौगात, सुरम्य करिश्मा,
ऐ सखि साजन ? नहिं सखि चश्मा !

2.
नज़र-नज़र में ही बतियाए,
देख उसे मन खिल-खिल जाए,
सुबह शाम उसको ही अर्पण,
ऐ सखि साजन? नहिं सखि दर्पण !

3.
साथ बिताये रैन दुपहरी ,
बातें उसकी मीठी गहरी ,
मजेदार नटखट मन जीवी ,
ऐ सखि साजन ? नहिं सखि टीवी !

4
आते ही मुस्कान जगाए,
ख़्वाबों को ताबीर दिलाए ,
खुल्ली शौपिंग, मिले ज्वेलरी ,
ऐ सखि साजन ? नहीं सेलरी !     सादर

____________________________

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 6, 2012 at 9:49am

बहतु बेहतरीन तरीके से मुकर गयीं हैं आप
बहुत सुन्दर लेखन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीया

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on August 6, 2012 at 7:55am

प्राची जी बहुत ही समसामयिक मुकरियाँ है और सुंदर भी...इस मुकरी ने तो चश्मा लगाने वालों की पीड़ा को उकेर दिया...उस बिन दुनिया ही धुंधलाए 
अखियाँ दुःख-दुःख नीर बहाएं,
है सौगात, नायाब करिश्मा,
ऐ सखी साजन ? न सखी चश्मा l

सही कहा है....ये नायाब है॥वर्ण दुनिया फीकी फीकी लगती है...

बहुत बहुत बधाई !!

Comment by Albela Khatri on August 5, 2012 at 10:36pm

achha laga baanch kar

Comment by UMASHANKER MISHRA on August 5, 2012 at 8:49pm

बहुत सुन्दर ..कह मुकरियाँ

सभी मजेदार  लगी

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 5, 2012 at 8:29pm

रोचक कह मुकरियाँ.........बधाई स्वीकारें........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 5, 2012 at 5:17pm
इन कह मुकरियों को मान देते हुए , इस विधा पर एक खूबसूरत कह-मुकरी लिखने के लिए आपका आभार आ. अरुण निगम जी

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 5, 2012 at 5:13pm

चश्मा ,दर्पण ,वेतन ,टीवी

नटखट भी और बुद्धिजीवी

मनवा करता है धुक धुक री

ऐ सखी साजन ? ना................ "कहमुकरी"


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 5, 2012 at 5:11pm
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, आपका हार्दिक आभार इन कह-मुकरियों को सराहने के लिए, और सखी को प्रेषित सन्देश के लिए भी...

कृपया ध्यान दे...

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