For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सोचने लगती हूँ तो लगता है जैसे कल की ही बात है, बारहवीं के पेपर देकर फ्री हुई तो खूब मस्ती हो रही थी | एक दिन मम्मी ने कहा “चल हेमा अजित भैया के घर चलते हैं, भाभी का फ़ोन आया था  भैया कई दिनों से ऑफिस नहीं गए उनकी तबियत ठीक नहीं है | मैंने कहा चलो चलते हैं | मामाजी के यहाँ मुझे हमेशा अच्छा लगता था, बस उनकी एक ही आदत शराब पीने वाली मुझे अच्छी नहीं लगती थी | मैंने मम्मी से पूछा कि मामाजी क्या अब भी शराब पीते हैं |मम्मी ने कहा नही अभी छ: महीने पहले जब  भैया दूज में भाभी बता रही थी कि जब से डॉक्टर ने उन्हें शराब पीने को मना किया है उन्होंने शराब को छुआ तक नहीं | मैंने कहा यह तो बहुत अच्छी बात है चलो उनसे मिलकर अच्छा लगेगा |
जब हम मामाजी के यहाँ पहुचें तो वहां का नजारा देखकर मुझे घोर आश्चर्य हुआ | मामा जी बिस्तर में बेहोश पड़े थे, उनके बिस्तर के नीचे शराब की बोतलें पड़ी थी | मैंने आखों ही आखों में मम्मी से पूछा, "मम्मी ये क्या है ?" मम्मी भी आश्चर्यचकित कभी उन बोतलों को कभी मुझे देख रही थी | मामी जी से मम्मी ने पूछा, "भाभी ये सब क्या है ?" 
मामी बस नजरे चुरा गई और चाय नाश्ता लाने के बहाने वहां से हट गई | घर में राकेश 
भैया भी नजर नहीं आ रहे थे | मामा जी के दो बेटियां और एक बेटा राकेश है | दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है और राकेश दसवीं में चार बार फेल होकर आजकल बेकार घूम रहा है, पर कहने को बेटा है, खेवनहार है|
मेरा तो जी अजीब सा हो गया जैसे ही मामी जी अन्दर चाय लेने गई मैंने मम्मी से कहा, "मम्मी अब चलो यहाँ से यही सब देखना था क्या? मामी जी भी कितनी शर्मिंदा सी लग रही हैं | अब तो मामा जी की मदद भगवान भी नही कर सकते | मम्मी और मै किसी तरह चाय गटक कर वहां से निकले | 
छुट्टियों में अपनी गणित अच्छी कर लूँ यह सोचकर अगले दिन मै बाजार गई | वहां किताबों की दुकान में नवीन मिल गया, नवीन मामा जी का पडोसी और मेरा क्लास मेट है | मैंने कहा," नवीन क्या बात है छुट्टियों में भी किताब की दुकान पर| "
नवीन बोला,"हाँ, मनोरमा इयर बुक लेने आया था |"
नवीन बोला,"तुम्हे मालूम है तुम्हारे मामा जी की तबियत बहुत ख़राब है|"
मैंने कहा,"हाँ मालूम है, कल ही मम्मी और मै मामा जी को देखने गये थे | लगता नहीं वो बचेगें, बीमारी में भी अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे हैं |" 
नवीन बोला," शायद तुम्हे सच्चाई नहीं मालूम तभी तुम ऐसे बोल रही हो | सोचो एक बीमार आदमी जो बिस्तर से उठ नहीं सकता वो शराब की दुकान से शराब कैसे ला सकता है |"
मैंने कहा फिर सच्चाई क्या है, और जो कुछ नवीन ने बताया उसे सुनकर मै स्तब्ध रह गई |
नवीन बोला," ये सब कम तो राकेश कर रहा है"
मैंने कहा,"क्यों? वो क्यों अपने पापा के साथ ऐसा कर रहा है?" क्यों अपने हाथों में अपने पापा को जहर दे रहा है?"
नवीन बोला," तुम्हे मालूम है, तुम्हारे मामा जी चार महीने बाद रिटायर होने वाले हैं और अगर वो रिटायर होने से पहले मर गये तो राकेश को उनकी जगह मृतक आश्रित नौकरी मिल जाएगी, इसलिए राकेश यह सब कर रहा है और यह सब तुम्हारी मामी को भी मालूम है|"
यह सुनकर मेरे तो पावँ तले जमीन ही खिसक गई | मैंने कहा,"तुम्हे यह सब कैसे मालूम ?"
नवीन ने कहा,"आजकल राकेश के पास कुछ काम धाम तो है नहीं, वो अपने दोस्तों से पैसे उधार ले रहा है कि छ: महीने के अन्दर अन्दर वो सबको दुगने पैसे वापस कर देगा क्योंकि उसे अपने पापा की जगह नौकरी मिल जाएगी | उन पैसों से वह शराब ला लाकर अपने पापा को पिला रहा है | सुबह से शाम तक शराब, पानी की जगह भी शराब |"
इतना सुनकर मेरे कानों ने और कुछ सुनना बंद कर दिया, दिमाग में तूफान उठने लगा, किसी तरह मै घर पहुंची | घर पहुँच कर मै मम्मी को यह बात बताने की हिम्मत जुटा ही रही थी की शाम को मामा जी के देहांत की खबर आ गई, जिसे सब मामा जी की मौत समझ रहे थे वो मामा जी की हत्या थी, ये बात जानते हुए भी मै किसी से कुछ नहीं कह सकी | अब कहकर क्या होना था मामा जी तो जा ही चुके थे|
राकेश 
 भैया को मामा जी की जगह नौकरी मिल गई, पर मै राकेश भैया और मामी जी को माफ नहीं कर सकी |

Views: 816

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 26, 2012 at 10:01pm

विश्वास नहीं होता कोई पत्नी ऐसा अपने पति के साथ कर सकती है परन्तु आज के वक़्त में कुछ भी हो सकता है पुत्र का अँधा प्रेम ऐसी स्त्रियों से कुछ भी करवा सकता है कहानी पढ़ते पढ़ते मैं भी संज्ञा शून्य सी हो गई ,आँखे खोलती और समाज के एक घ्रणित चेहरे को दिखाती हुई उत्कृष्ट कहानी के लिए सावी जी बधाई 

Comment by Albela Khatri on June 26, 2012 at 9:27pm

उफ़ !
क्या कहानी है
कहानी क्या है  दर्पण है
वाह वाह  सवी जी बहुत ख़ूब !


नवीन बोला," तुम्हे मालूम है, तुम्हारे मामाजी चार महीने बाद रिटायर होने वाले हैं और अगर वो रिटायर होने से पहले मर गये तो राकेश को उनकी जगह मृतक आश्रित नौकरी मिल जाएगी, इसलिए राकेश यह सब कर रहा है और यह सब तुम्हारी मामी को भी मालूम है|"

__इस  उम्दा कहानी के लिए अभिनन्दन स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Jun 6
Sushil Sarna posted blog posts
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service