For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'झांकियां और चुनौतियां' (लघुकथा)

नवरात्रि की 'एक झांकी' के समानांतर एक और झांकी! नहीं, एक नहीं 'तीन' झांकियां! मां दुर्गा की 'स्थायी झांकी' में चलित झांकियां! चलित? हां, 'चलित' झांकियां! उस अद्भुत संदेशवाहिनी झांकी से प्रतिबिंबित अतीत की झांकियां; उसके समक्ष खड़ी हुई सुंदर युवा मां के सुंदर कटीले बड़े से नयनों में! उसके मन-मस्तिष्क में! दुर्गा सी बन गई थी वह उस जवां मर्द के शिकंजे से छूट कर और कुल्हाड़ी दे मारी थी उस वहशी के बढ़ते हाथों पर! दूसरे धर्म का था वह दुष्ट! जाति-बिरादरी के मर्दों के हाथों बेमौत मारा जाता वह! उसके पहले ही उसने उस निर्लज्ज को सबक़ सिखा दिया था! हां, वह भी नवरात्रि का ही अवसर था! परिचित ही था, पर जम कर पिये हुए था। फंस गई थी उसके जाल में; लेकिन बचा गई स्वयं को ऐसी ही झांकियों के असरात से! भला हो याक़ूब का; उसने न सिर्फ़ निकाह में लिया, बल्कि उस पर कभी कोई शक़ और सवाल भी नहीं किया! सात साल बाद मायके आई, तो अपने दोनों बच्चों को लेकर अम्मी-अब्बू को बताये बग़ैर माथे पर बिंदी लगाकर पड़ौस में स्थापित नवरात्रि की झांकी देखने चली तो आई, लेकिन डरी-सहमी सी! सटी हुई खड़ी उसकी पहली संतान यानि बिटिया भी वैसी ही किसी अज्ञात भय के साथ सहमी सी व डरी हुई थी कि अम्मी-अब्बू या कोई मुसलमान कहीं उन्हें यहां खड़े हुए देख न ले! विसंगति यह थी कि उसकी दूसरी संतान यानि गोदी में एक खिलौने से खेलता उसका बेटा,  झांकी, रौशनी और चहल-पहल देख, मंद-मंद मुस्करा रहा था धर्मों की विसंगतियों से बिल्कुल ही अनजान!


"डर मत मेरी बच्ची! तुम्हें मुझसे भी ज़्यादा मज़बूत और सच्ची हिन्दुस्तानी लड़की बनना है!" उस महिला ने बेटी के मौन को भंग करते हुए कहा - "अच्छी बातों का इल्म और तालीम जितनी ज़ल्दी जिन ज़रियों से हो जाये, उतना ही अच्छा! तुझे तो नये और पहले से बहुत बुरे ज़माने से जूझना है रे!"


बिटिया अपनी मां के बदन से चिपक कर मां दुर्गा की संदेशवाहिनी झांकी का मुआयना उस नज़र से करने लगी, जिस नज़रिए से उसकी अम्मीजान मां के रूपों को उसे मज़हबी कहानियों के मार्फ़त समझाया करतीं थीं।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 500

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 22, 2018 at 3:38pm

आदाब।.पहली पाठकीय हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह  साहिब।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 22, 2018 at 3:36pm

आदाब। कृपया इस वाक्यांश - //अम्मी-अब्बू या कोई मुसलमान // के स्थान पर //उसके नाना-नानी,मामूजान या कोई अन्य मुसलमान..// पढ़िएगा। सादर। 

Comment by TEJ VEER SINGH on October 22, 2018 at 11:28am

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।बेहतरीन लघुकथा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
5 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service