For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब हकीक़त सामने है क्यों फ़साने पर लिखूँ
ये है बेहतर, दर्द में डूबे ज़माने पर लिखूँ

खेत पर, खलिहान पर, मैं भूख-रोटी पर लिखूँ
बंद होते जा रहे हर कारखाने पर लिखूँ

फूल, भँवरे और तितली की कहानी छोड़कर
आदमी के हर उजड़ते आशियाने पर लिखूँ

ख़त्म होते जा रहे रिश्तों के आँसू पर लिखूँ
आदमी को रौंदकर पैसे कमाने पर लिखूँ

याद तुमको क्यों करूँ मैं, और क्यों करता रहूँ
इक कहानी अब मैं तुमको भूल जाने पर लिखूँ

जिसकी सूरत रात-दिन अब है बिगड़ती जा रही
मैं उसी धरती को अब फिर से सजाने पर लिखूँ

बस्तियों में आम लोगों की गरीबी देखकर
कुछ घरों में क़ैद मैं सबके ख़ज़ाने पर पर लिखूँ

सोचता हूँ, तेरे जाने का कोई न ज़िक्र हो
एक दिन एक गीत तेरे लौट आने पर लिखूँ

"मौलिक व अप्रकाशित"

- डॉ. राकेश जोशी

Views: 648

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Rakesh Joshi on January 8, 2016 at 10:11pm

आदरणीय मनोज जी,

सादर नमस्कार.

मुझे भी आपको यहाँ देखकर ख़ुशी हुई.

मैं आपका आभारी हूँ.

सादर,

डॉ. राकेश जोशी

Comment by Dr. Rakesh Joshi on January 8, 2016 at 10:10pm

आदरणीय  Ravi Shukla जी,

सादर नमस्कार.

मेरी ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी के लिए आपको धन्यवाद.

मैं आपका आभारी हूँ.

सादर,

डॉ. राकेश जोशी

Comment by मनोज अहसास on January 8, 2016 at 8:52pm
आपको यहाँ देखकर ख़ुशी हुई
स्वागत है सर
सादर
Comment by Ravi Shukla on January 8, 2016 at 5:09pm

आदरणीय डा राकेश जी आपकी ग़ज़ल पहली बार पढ़ने का सौभाग्‍य मिला है बहुत बहुत बधाई स्‍वीकार करें । बाकी बात विद्वत जन कह ही चुके है । सादर

Comment by Dr. Rakesh Joshi on January 7, 2016 at 11:22pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी,
सादर नमस्कार.
मेरी ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी के लिए आपको धन्यवाद.
मैं आपका आभारी हूँ.
सादर,
Comment by Dr. Rakesh Joshi on January 7, 2016 at 11:22pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी,
सादर नमस्कार.
मेरी ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी के लिए आपको धन्यवाद.
मैं आपका आभारी हूँ.
सादर,

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2016 at 10:55pm

 आदरणीय राकेश जोशी जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई निवेदित है. एक निवेदन है कि मंच पर ग़ज़ल प्रस्तुत करने के साथ ग़ज़ल की बह्र या वज़्न लिखने की परिपाटी रही है, जिसका अनुशासन की सीमा तक पालन किया जाता है. इसलिए निवेदन है कि ग़ज़ल की बह्र या वज़्न अवश्य लिख दें. इससे पाठक के लिए भी प्रस्तुति का आनंद दुगुना हो जाता है और प्रस्तुति को समझने में भी सहजता होती है. 

इस मंच की सीखने-सिखाने की परंपरा के अनुक्रम में एक निवेदन और है कि आदरणीय समर कबीर जी की बात पर अवश्य गौर कीजियेगा. सादर 

Comment by Dr. Rakesh Joshi on January 7, 2016 at 9:59pm

आदरणीय समर कबीर जी,

सादर नमस्कार.

मेरी ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी के लिए आपको धन्यवाद.

मैं आपका आभारी हूँ.

सादर,

डॉ. राकेश जोशी

Comment by Dr. Rakesh Joshi on January 7, 2016 at 9:58pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,

सादर नमस्कार.

मेरी ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी के लिए आपको धन्यवाद.

मैं आपका आभारी हूँ.

सादर,

डॉ. राकेश जोशी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2016 at 9:08pm

आदरणीय दा. राकेश भाई , इस बेहतरीन गज़ल के लिये आपको दिली मुबारक बाद ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
2 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service